Book Title: Sudharm Gaccha Pariksha
Author(s): Bramharshi Muni
Publisher: Ravji Desar

View full book text
Previous | Next

Page 25
________________ श्री सुधर्मगढ परीक्षा. रथवखाणुं साचोतास, जेम थिरहुवें सम कितवा वीरथकी नवसे त्राणवे, एक प्रकार सउ पुष हुने; सतवादनराय पुरपठाण, न्यायरीति पाले ते जाए ॥ ७२ गोदावरीत पर तीर, सतवाहन संग्रामे धीर; एत्रो मोटो राजा गुणी, बहु देसे थाज्ञा ते तपी ॥ ७३ ॥ से उजेली नगरी जोइ, बलमित्र जाणुमित्र नृप हो; जगनीसुतते इनोदी खीच, कालिकसूरिवसे मंजस कि ॥७४ मार्गी नविनुमति केदनी, राये रीस करी तेहनी; श्राचार्यने दिसवट दीघ, सूरि विहार तिहांथी की ॥इए गया पुर पठाण जेटले, राये सनमान्यो तेटले; धर्म सांजले यादर करे, हियमे दरख घणेरो धरे ॥७६॥ छांते जरने तप कारवे, आठम पाखी इम जालवे; दिवरावे पारणे आहार, जगतिजाव आणि संविचार ॥199 पुण जोजो मन एड् विचार, वीर तीरथै बे ए परिहार; राजपिंग नवि सेवो सही, ते पुण लेतां तेपि पुर रही ॥७७ पण श्राव्यं हुंकडुं, तो पनि एह सांकडु पांचम दिनजोइए इंद्रजाग, नदीपजूस पनोतिहांलाग ॥७५ तो राजा कहे जगवन् सुपो, नहि पले दिन पंचमितणो; श्राघो पाठो एक दिन करो, एह वचन अम्हारुं धरो ॥ ८० १. जे. २ समन बगरनं. ३ श्री माहावीरस्वामीना शासनने विषे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ( १७ ) ||११ www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94