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श्री सुधर्मगढ़ परीक्षा.
(२७)
र्यादा बे. जो चोथन करे तो श्री कल्पसूत्र सजानी अंदर न वैचाय ए बाबतनो खुलासो केवी रीतिनो बे ?
उत्तर - समीक्षक ! तमारा कड़ेषां प्रमाणे श्री कल्पसूत्रनी व्याख्याननी अंदर अने अंतरवाचनानी अंदर ' एगग्ग चित्ता जिण सासणं मि, पावणा पूय परायणा जे ॥ तिसत्तवारं निसुांति कप्पं, जवएणवं गोयम ते तरंति ॥ १ ॥ एटले के श्री वीरप्रभुजी गौतमस्वामी प्रत्ये फरमाले के-'हे गौतम! जे प्राणी, या कल्पसूत्रने पूजी ने प्रजावनायुक्त एकाग्रचित्तनी सावधानी सहित था जिनशासनने विषे विधिपूर्वक श्री गुरुमहाराजनी पासे एकत्रीश वखत सांजले वे तों ते प्राणी अवश्य या संसारसमुद्र तरीने मोक्षने पामे.' एम श्री जिनेश्वरे प्रथम गणधर देवने कझुं. ए कथन तथा कल्पसूत्रनी पूर्णाहुती समयनो आलावो (के जे अर्थसहित आयल कामां श्रवशे से ) तद्दन खंडित थर जाय. माटे लक्षपूर्वक ए शंकानुं समाधान श्रवण करः - ज्यारे श्री कल्पसूत्र (श्री वीरप्रजु पठी ए८० वर्षे ) पुस्त
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