Book Title: Sudharm Gaccha Pariksha
Author(s): Bramharshi Muni
Publisher: Ravji Desar

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Page 18
________________ (१०) श्री सुधर्मगच परीका. य सद्वीवा ॥ आणा जुत्तो संघो। से सो पुण अहि संघान.॥ जावार्थ:-एक साध, तथा एक साध्वी, तथा एक श्रावक, एक श्राधिका, पण जो जिनेश्वरती बाणा पा. लनार होय तो संघ कहेवाय ने. सम्यक् प्रकारे कर्मने हणे ते संघ, तथा मिथ्यात्व कचराथी रहित थै वस्तु गते वस्तुनी झा, परूपणा, प्रवर्तना, यथोचित मर्यादा कारक तथा पालक, स्वपद परपक्षने विषे शासनना प्रजावक, तेमज थाचार विचार, श्रौदार्य, धैर्य, गांजीर्य, चातुर्य, दाक्षिण्य, विनय, विवेकादि गुण जेमां होय ते संघ कहेवाय ले. ते गुणहीन होय तो संघ न कहेवाय; परंतु हाडकांनो ढगलो कदेवाय बे. नाव सूरि गठ श्राझापाल, श्रापमतिसु संगति टाल; थाप मते नर्बुजाणी करे, तो पुण जवसायर नवि तरे॥३५ यतः-जिणाणाए कुणं ताणं । नणं निवाणं कारणं ॥ सुंदरंपि सबुधिए। सवं जव निबंधणं॥ नावार्थ:-जिनेश्वरदेवनी आणा प्रमाणे जे जव्य जीव वर्ते तो निश्चे ते प्राणी निर्वाणपद साधी शकेले. अने जे प्राणी मनोमति आपमतीये वर्ते तेनुं सर्व अनु Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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