Book Title: Sudharm Gaccha Pariksha
Author(s): Bramharshi Muni
Publisher: Ravji Desar

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Page 17
________________ श्री सुधर्मगड परीक्षा (प.) जेनण वाससएवि पवश्ए हुत्ताणं वायामित्तेणंपि आगमन वाहिं करेंति ते-नाम-ठवणाहिं किंठश्यो। नावार्थ:-हे जगवन्! कोण नावाचार्य कदेवाय ? हे गौतम! जे याचारज थाजनो दीक्षित पण सिफांत विधियें करी पद, पदवने अनुसंचरे (चाले) ते जावा. चार्य कहीये, अने जे सो वरसनो दीक्षित पण यश्ने यागमथी उलटो (बागमथी विपरीत) श्रागम बाह्य जे वर्ते ते नामस्थापनाचार्य साथे गषयो, एटो निर्गुण प्राचार्य ते नामाचारज, स्थापनाचार्य जेवा. तेनी याणा पालवी कही नथी, . नावाचारज जे गठ मांद, ते सुधर्मगड जो श्राराहा नाम मात्र गधगरज न सरे, जो परखी साचूं नादरे ॥२॥ एक बाण पाले जिनतणी, करे कल्पना एक आपणी; तिणकारण गबपरखोसाच, रत्नवरीसेममयो काच ॥३० सोनानी परि परखी करी, ल्यो गह साचो ने संवरी; . मुंड मेलावे गठन कहाय, आणसहित थोडे गढ थाया३१ यतः-एगो-साहु-एगावि-साहुण।। साव गो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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