Book Title: Sudharm Gaccha Pariksha
Author(s): Bramharshi Muni
Publisher: Ravji Desar

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Page 15
________________ श्री सुधर्मगड परीक्षा. (७) शता तेमज ते पंचाचार प्रति मुनियोने देखाडता, एहवा आचार्य जे दोय अने विषयन। दुष्टता तथा कषाय दुष्टता तेश्री बोडावनारा ते देतुथी आचार्य नगवान शुभ परुपणा करी चव्यजीवोना तारक तेनेज आचार्य (नावाचार्य कदेवाय .) . थाचारज पुण तेदज जाण, जे नाखे सुधा जिनवाण; याण विना आचारज जेह, कुपुरुषमांहे तेनी रेह ॥ २४ यतः-तिचयर समोसूरी। जो सम्म जिणमयं पयासे॥ आणं अश्कमंतो।सो-कान रिसो-न सप्य रिसो॥१॥ नावार्थः-जे आचार्य जिनमतना रहस्य तथा तल पदार्थ झानना रहस्य-मूल सूतसार प्रते सम्यक् जे रूपे, जे नावे जिनेश्वरे कह्या ते प्रमाणे प्ररूपे ते तीर्थकर समान गणाय. वली जे परमात्मानी आणाने तोडता नथी ते सत्पुरूष कवाय, अने पोतानी पूजा करवा माटेज जेनी प्रवृत्ति ते कुपुरुष एटले नादान, पोते मुबे ने बीजाने मुबाडे ते नाममात्र आचारज जाणवा. नामरस्थापनाश्ने व्य३नावध, श्राचारज चिहुंनेदेजाव; थशुद्धत्रण नांगा सूरिना, चउथे नाव धरो नावना ॥२५ नावसूरिना लक्षण एह, सूत्राचारे वरते जेह; सूत्रपंथ जे वर्ते नहीं, अशुद्ध त्रिजंगी गणिते सही ॥१६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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