Book Title: Sudharm Gaccha Pariksha
Author(s): Bramharshi Muni
Publisher: Ravji Desar

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Page 11
________________ श्री सुधर्मगच परीक्षा. (३ ) पुण ए वात न पंमित कहे, पाठ फेर जे गड सहहे; वीतरागनो मत ने एक, जगवई वृत्ति जो विवेक ॥१॥ ___ यतः-" यदेवमतमागमानुपातितदेवसत्य मितिमंतव्यमितरत्पुनरुपे क्षणीयमथाऽबहश्रुतेन नैतदवसातुं शक्यते तदैवं जावनीयं, आचायाणां संप्रदायादिदोषादयं मतदो जिनानां तु मतमेकमेवाविरुद्धञ्च रागादिदोषविरहितत्वात्" लावार्थः-जेनोज मत श्रागमने अनुसारे होय तेज सत्य गणाय ने एवी रीते मानQ जोए-अने तेथी वि. परीत जे होय तेने त्याग करवो जोइए. हवे अहिं बहुश्रुत बिना कोई निर्णय करी शके नहि, ते माटे श्रावी रीते विचारखं जोइए के आचार्योनी संप्रदाय आदि दोष वडे करी मतन्नेद , परंतु जिनेश्वरनो मत एकज अविरुरू होय , केमके राग द्वेषादिदोषरहित होवाश्री तेश्रोनो मत निर्दूषित गणाय , माटे तेज अंगीकार करवो जोइए अने तेनानीज कल्याण थाय, पण जे जिनागमधी विरुष्क होय ते त्याग करवो. स्वात स्थापन रसिकपणाथी प्रवचन विरुद्ध परुपेयुं होय तेनो सम्यक्दृष्टि जीवे त्याग करवो जोइए. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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