Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
View full book text
________________
संपादकीय - विशेष
मानवीय आचार ढले, नीति व धर्म का प्रवेश हो तथा उच्चतर चरित्र का निर्माण हो तो सारी प्रतिकूल परिस्थितियाँ अनुकूल बन सकती हैं और सामान्य जन भी चरित्रशील बन कर अपना जीवन विकास सुगमतापूर्वक कर सकता है।
यह भी सत्य है कि आज जन भावनाओं में क्रांतिकारी बदलाव आ रहा है और जनमत की प्रबलता के अनुसार भ्रष्ट व्यवस्था भी जनहित के कार्य करने के लिए विवश होने लगी है । जैसे, मुंबई में बहुमंजिली ईमारतें बनी और उनके साथ ही कच्ची बस्तियाँ और झोपड़पट्टियाँ भी फैली। इसका आम आदमियों द्वारा सख्त विरोध हुआ तो अब झोपड़पट्टियों वालों के लिए भी व्यवस्थित मकान बन रहे हैं। इसी प्रकार जन-बल के अनुसार समस्याएँ सुलझने लगी हैं।
यह अकल्पनीय है कि सारे मानव समाज में सभी मानव चरित्र निर्माण के शीर्ष पर पहुँच जाएं या कि सभी चरित्रहीनता के पतन में गिर जाएं । चरित्रहीनता और चरित्रशीलता के बीच निरन्तर संघर्ष चलता है। यह संघर्ष चलाते हैं प्रबुद्ध वर्गों के सदस्य, जैसे साधु-संत, उपदेशक, प्रचारक, भावनाशील पुरुष आदि। इनके सत्प्रयासों से चरित्र निर्माण का स्तर प्रोन्नत होता है, चरित्रहीनों में चरित्र गठन की प्रवृत्ति पनपती है और अधिसंख्य व्यक्ति चरित्रनिष्ठ बनते हैं । परिणाम स्वरूप बुराईयों की ताकतें कमजोर पड़ती हैं और चरित्रशील व्यक्तियों का संख्या बल एवं चरित्र बल दोनों बढ़ते हैं तथा समाज व्यवस्था सुचारु बनती है।
वस्तुत: किसी भी चरित्र निर्माण अभियान या आंदोलन का लक्ष्य यही होना चाहिए कि बुराई के विरुद्ध अच्छाई का संघर्ष सफल होता रहे और बुराई का अनुपात घटता रहे - अच्छाई का अनुपात बढ़ता रहे। आशय यह है कि दुष्चरित्रता के विरुद्ध सच्चरित्रता का प्रभाव कई गुना बढ़ जाए । उदाहरण के लिए मानें कि आज चरित्रहीनता और चरित्रशीलता का अनुपात 7 : 3 का है तो लक्ष्य यह बनना चाहिए कि यह अनुपात उलट दें याने अनुपात 3: 7 का बन जाए तथा इससे ऊपर जाने का प्रयत्न जारी रखा जाए। चरित्रहीनता का सर्वथा उन्मूलन शक्य नहीं। शक्य यही है कि चरित्रशीलता का विस्तार चरित्र निर्माण अभियान के माध्यम 70 प्रतिशत तक पहुँचे। इस अभियान के नेता और कार्यकर्ता इस अभियान को कभी सम्पन्न न मानें और प्रयत्नरत बने रहें । फलस्वरूप चरित्रशीलता की शक्ति बढ़ती रहेगी जो व्यक्ति और व्यवस्था दोनों को परिमार्जित करती रहेगी । बहुमत चरित्र निर्माण के समर्थन एवं सहयोग में खड़ा हो जाएगा।
प्रस्तुत ग्रंथ "चरित्र निर्माण : एक विजय अभियान" के प्रणेता आचार्य श्री विजयराजजी म.सा. हैं, जिनकी प्रेरणा से चरित्र निर्माण के पक्ष में अद्भुत वैचारिक क्रांति घटित हो रही है । जनमत बन रहा है कि बिना चरित्र निर्माण के इस मानव जीवन का कोई महत्त्व नहीं और सारा भौतिक निर्माण तथा विज्ञान - विकास भी व्यर्थ है । चरित्र निर्माण के प्रश्न पर आचार्य श्री का मत है कि चरित्रशील बनने के लिए जन-जन का मनोबल उभरना चाहिए, किन्तु साथ ही समाज का संबल भी मिलना चाहिए। वही बात है कि पांव मजबूत या कुछ कमजोर भी रहें, तब भी यदि धरातल सीधा-समतल
XVII