Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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संपादकीय-विशेष चरित्र निर्माण में मुख्य है समाज व्यवस्था भी
मनुष्य आज अकेला नहीं रहता। किसी न किसी प्रकार के समूह में ही वह रहता है। समूह का दूसरा नाम ही समाज है और अनेकानेक समाजों का समूह ही मानव समाज कहलाता है। समूह चाहे परिवार के रूप में सबसे छोटा घटक होता है तो संपूर्ण संसार के रूप में सबसे बड़ा घटक, किन्तु सामाजिकता मनुष्य जीवन की मुख्य भूमिका बन गई है। समाज शब्द का जो प्रयोग करते हैं, उसका निहितार्थ सम्पूर्ण मानव समाज से ही है, जिसमें नीचे से ऊपर तक के सारे संघों, संगठनों, संस्थाओं, विभिन्न स्तरों की शासकीय सरकारों तथा अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों का समावेश हो जाता है। ___ आज विज्ञान के क्षेत्र में सूचना तकनीक इतनी विकसित हो गई है कि त्वरित सम्पर्क की दृष्टि से सारा संसार एक छोटे से गांव के समान घनिष्ठ हो गया है। आज चरित्र निर्माण या अन्य किसी संस्कार सुधार अभियान को विश्व स्तर तक पहुँचाना, चलाना और सफल बनाना कठिन भले हो, पर टेढ़ी खीर नहीं रहा है।
चरित्र निर्माण के संदर्भ में दो भिन्न-भिन्न दृश्यों की कल्पना करते हैं। पहला दृश्य है कि दो समान शक्ति एवं उत्साहसम्पन्न व्यक्तियों को एक से दूसरे निर्धारित स्थान तक दौड़ लगाते हुए गंतव्य तक पहुँचना है। किन्तु दोनों के लिए समान दूरी वाले अलग-अलग प्रकार के दो मार्ग हैं। एक है ऊबड़-खाबड़ और कांटों-भाटों से भरा हुआ दुर्गम मार्ग तो दूसरा सीधा, सपाट, समतल सड़क का मार्ग। दोनों अपने-अपने मार्ग पर दौड़ शुरू करते हैं, परन्तु परिणाम? पहला व्यक्ति थककर चूर और लहूलुहान होकर अधबीच में ही गिर जाता है, जबकि दूसरा व्यक्ति अल्पतम
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