Book Title: Sthanang Sutram Part 02
Author(s): Vijaychandrasguptasuri
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust

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Page 323
________________ श्रीस्थानाङ्ग श्रीअभय० वृत्तियुतम् भाग-२ // 815 // नवममध्ययन नवस्थानम्, सूत्रम् 693 श्रेणिकचरित्रादि दिसं इच्छइ तं णं तं णं दिसं अपडिबद्धे सुचिभूए लहुभूए अणप्पगंथे संजमेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरिस्सइ, तस्स णं भगवंतस्स अणुत्तरेणं नाणेणं अणुत्तरेणं दंसणेणं अणुवचरिएणं एवं आलएणं विहारेणं अजवे मद्दवे लाघवेखंती मुत्ती गुत्ती सच्च संजम तवगुणसुचरियसोवचियफलपरिनिव्वाणमग्गेणं अप्पाणंभावमाणस्स झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अणंते अणुत्तरे निव्वाघाए जाव केवलवरनाणदंसणे समुप्पजिहिंति, तएणं से भगवं अरह जिणे भविस्सइ, केवली सव्वन्नू सव्वदरिसी सदेवमणुआसुरस्स लोगस्स परियागं जाणइ पासइ सव्वलोएसव्वजीवाणं आगइंगतिं ठियंचयणं उववायं तवं मणोमाणसियं भुत्तं कडं परिसेवियं आवीकम्मरहोकम्म अरहा अरहस्स भागीतं तं कालं मणसवयसकाइए जोगे वट्टमाणाणंसव्वलोए सव्वजीवाणं सव्वभावे जाणमाणे पासमाणे विहरइ, तए णं से भगवं तेणं अणुत्तरेणं केवलवरनाणदंसणेणं सदेवमणुआसुरलोगं अभिसमिच्चा समणाणं निग्गंथाणं (जे केइ उवसग्गा उप्पजंति, तं०- दिव्वा वा माणुसा वा तिरिक्खजोणिया वा ते उप्पन्नेसम्मं सहिस्सइ खमिस्सइ तितिक्खिस्सइ अहियासिस्सइ, तते णं से भगवं अणगारे भविस्सति ईरियासमिते भास एवं जहा वद्धमाणसामीतंचेव निरवसेसंजाव अव्वावारविउसजोगजुत्ते, तस्स णं भगवंतस्स एतेणं विहारेणं विहरमाणस्स दुवालसहिं संवच्छरेहिं वीतिकंतेहिं तेरसहि य पक्खेहिं तेरसमस्स णं संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अणुत्तरेणं णाणेणं जहा भावणाते केवलवरनाणदंसणे समुप्पजिहिन्ति जिणे भविस्सति केवली सव्वन्नू सव्वदरिसी सणेरईए जाव) पंच महव्वयाई सभावणाईछच्च जीवनिकायधम्मंदेसेमाणे विहरिस्सति से जहाणामते अज्जो! मतेसमणाणं निग्गंथाणं एगे आरंभठाणे पण्णत्ते, एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं एगं आरंभट्ठाणं पण्णवेहिति से जहाणामते अज्जो मते समणाणं निग्गंथाणं दुविहे बंधणे पं० त०- पेजबंधणे दोसबंधणे, एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं दुविहं बंधणं पन्नवेहिती, तं०- पेजबंधणंच दोसबंधणंच, से जहानामते अजो मते समणा० निग्गंथाणं तओ दंडा पं० तं०- मणदंडे 3 एवामेव

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