Book Title: Sramana 2016 04
Author(s): Shreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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श्रावक केश लोच : आगमेतर सोच : 9 महीने तक पूरी-पूरी रात खड़े होकर कायोत्सर्ग किया, उस दौरान जिनेन्द्र भगवन्तों का विशेष ध्यान किया। जिन दिनों कायोत्सर्ग नहीं किया जाता था उन दिनों स्नान और रात्रिभोजन का त्याग तो करना ही था। छठी प्रतिमा में ब्रह्मचर्य की विशिष्ट साधना छः महीने तक की। शरीर का श्रृंगार, एकान्त में वार्तालाप का त्याग भी इस प्रतिमा में किया जाता हैं। यदि किसी साधक का मन दृढ़ हो जाए तो जीवन पर्यन्त के लिए ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा भी ली जा सकती है। अगली सातवी प्रतिमा में सचित्त आहार का वर्जन किया गया। आठवीं प्रतिमा के अन्तर्गत आठ माह तक स्वयं गृहस्थोचित आरम्भ-समारम्भ छोड़ दिए पर नौकर चाकर से करवाने बन्द नहीं किए। इतनी भूमिका तैयार होने के पश्चात् नौ महीने की नौंवी प्रतिमा में नौकरों से काम करवाना, अपने लिए किसी वस्तु को तैयार करवाना छोड़ दिया। दसवीं प्रतिमा दस महीने तक चलती है। इसकी आराधना करते हुए आनन्द ने नियमानुसार परिवार से आने वाले उस भोजन को लेना बन्द कर दिया जो भोजन परिवार ने उनके निमित्त से बनाया होता। घर से इतना मात्र संपर्क रखना होता है कि यदि कोई सदस्य यह कहता हो कि हमें ऐसा-ऐसा काम करना है, तो श्रावक उत्तर में इतना उत्तर देता है कि समझ गया या मेरी समझ में नहीं आता। शरीर के सम्बन्ध में उसकी मर्यादा यह है कि जरूरत पड़ने पर उस्तरे से सारे बालों का मुण्डन करवा ले और यदि लौकिक रस्म का पालन आवश्यक हो तो शिखा रख ले। ग्यारहवीं 'श्रमणभूत' प्रतिमा है-जिसका कालमान ग्यारह महीने का है। श्रावक की अधिकतर चर्या और मर्यादा श्रमण-मुनियों जैसी हो जाती है। साधु तो वह इसलिए नहीं है क्योंकि उसका परिवार से लगाव जुड़ाव है। वह उस घर का सदस्य है पर साधना का स्तर काफी कुछ साधुओं जैसा हो जाता है। वह साधुओं जैसा वेष अपना लेता है। जीवरक्षा के प्रति साधुओं के समान अतिरिक्त सावधानी रखता है। साधुओं की तरह उसके सामने दाल और चावल में एक पका हो तो एक ही लेता है दूसरा द्रव्य नहीं लेता। गृहस्थों के घर जाकर भिक्षा लाता है। इन सब नियमों को निभाने वाले श्रावक को लोच करने की छूट भगवन्तों ने दी है। वह चाहे तो लोच भी करवा सकता है, नहीं तो उस्तरे से मुण्डन करवा सकता है। आनन्द श्रावक ने लोच करवाया या नहीं? यह वर्णन आगम में नहीं है पर संभावना की जा सकती है कि उसने लोच नहीं करवाया होगा। यह संभावना इस आधार पर उभरती है कि उस श्रावक की अनेकानेक क्रियाओं का वर्णन आगम में है, यदि लोच किया होता तो उसका उल्लेख हुए बिना नहीं रहता। जैसा कि हर साधु-साध्वी के दीक्षा प्रसंग पर लोच का उल्लेख अनिवार्य रूप से आगमकारों ने किया है- “पंच