Book Title: Solahkaran Dharma Dipak
Author(s): Deepchand Varni
Publisher: Shailesh Dahyabhai Kapadia

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Page 6
________________ सोलह्कारण धर्म । () दशनविशुद्धि। आत्मा ( जीव ) का बह गुण, जो अनन्तानबन्धी क्रोध, अनन्तानुबन्धी मान, अनन्तानुबन्धी माया, अनन्तानुबन्धी लोग और मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सम्यक्त्वप्रकृति मिथ्यात्व इन सात कर्मकी प्रकृतियोंके उपशम व क्षयोपशम व क्षय होनेसे प्रगट होता है उसे सम्यक्त्व या सम्यग्दर्शन गुण कहते हैं। यह सम्यग्दर्शन के प्रकारका होता है... यि और व्यवहार ! निश्चय सम्यग्दर्शन सत्यार्थ स्वरूप अर्थात् पुद्गलादि परद्रव्योंस भिन्न निज शुद्ध स्वरूपका श्रद्धान होनेको कहते हैं। ऐसा ही कविवर पण्डित दौलतरामजीने छहढालामें कहा है पाद्रव्यनते भित्र आपमे हाच सम्यक्त्व भला है। व्यवहार सम्पग्दर्शन निश्चय सम्यग्दर्शनके कारण जीवादि प्रयोजनभूत तत्वोंके सथा इन ( तत्वों । के प्ररूपण करनेवाले सच्चे देव, सच्चे गुरु और सच्चे शाख । धर्म) के श्रद्धानको कहते हैं। यहां पर कारणमें कार्यका आरोपण करके ( उपचारसे) यह कथन किया जाता है। ___व्यवहार सम्यग्दर्शनका स्वरूप भगवान उमास्वामीने तत्वार्थसूत्र अध्याय १ में इसी प्रकार कहा है तत्वार्थ श्रद्धानम् सम्यग्दर्शनम् ॥ २ ॥ अर्थजोव, अजीव, आश्रद, बन्ध, संवर, निर्जरा और. मोक्ष इन सातों तत्वोके श्रद्धानको सम्यग्दर्शन कहते हैं ।

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