Book Title: Siddha Parmeshthi Vidhan
Author(s): Rajmal Pavaiya
Publisher: Kundkund Pravachan Prasaran Samsthan

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Page 10
________________ श्री सिद्धपरमेष्ठी विधान/७ नहीं समझना यह मिथ्यात्व अकिंचित्कर तुम पलभर भी। जैसे भी हो यह मिथ्यात्व तिमिर क्षय करना मरकर भी॥ इसे अकिंचित्कर कहनेवाले तो निश्चित भोले प्राणी। इसे अकिंचित्कर. नहीं मानना कभी भूलकर हे प्राणी॥ व्रत लेने का अगर भाव हो तो पहले समकित लेना। फिर व्रत लेना बड़े भाव से कर्मों को क्षय कर देना। बिन सम्यग्दर्शन के यदि व्रत लोगे तो यह तुम जानो। त्रस पर्याय व्यर्थ जाएगी आगम का कहना मानो ॥ (गीतिका) दो मुझे आशीष जिनवर करूँ मैं निज आत्मज्ञान । विनय से पूजन करूँ मैं सिद्ध परमेष्ठी महान ॥ कर्म आठों ध्वस्त कर दूँ नाथ ऐसी शक्ति दो। धर्म रत्नत्रय परम की सतत पावन भक्ति दो॥ पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत् ऊँचे ऊँचे शिखरों वाला रे, यह तीरथ हमारा। तीरथ हमारा हमें लागे है प्यारा ॥टेक॥ श्री जिनवर से भेंट करावे, जग को मुक्तिमार्ग दिखावे ।। मोह का नाश करावे रे, यह तीरथ हमारा ॥१॥ शुद्धातम से प्रीति लगावे, जड़-चेतन को भिन्न बतावे॥ भेद-विज्ञान करावे रे, यह तीरथ हमारा ॥२॥

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