Book Title: Siddha Parmeshthi Vidhan
Author(s): Rajmal Pavaiya
Publisher: Kundkund Pravachan Prasaran Samsthan

View full book text
Previous | Next

Page 35
________________ श्री सिद्धपरमेष्ठी विधान/३२ अक्षय पद पाने को हे प्रभु सम्यक् अक्षत लाया हूँ। वेदनीय दो प्रकृति नाश हित प्रभु चरणों में आया हूँ॥ वेदनीय के नाशक सिद्धों को सादर वन्दन मेरा। अव्याबाधी सुख गुण पाऊँ नाश करूँ भव का फेरा ॥ ॐ ह्रीं वेदनीयकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि.। कामबाण की पीड़ा क्षयहित पुष्प शीलमय लाया हूँ। वेदनीय दो प्रकृति नाश हित प्रभु चरणों में आया हूँ॥ वेदनीय के नाशक सिद्धों को सादर वन्दन मेरा। अव्याबाधी सुख गुण पाऊँ नाश करूँ भव का फेरा॥ ॐ ह्रीं वेदनीयकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं नि.। क्षुधारोग विध्वंसक हे प्रभु सम्यक् चरु मैं लाया हूँ। वेदनीय दो प्रकृति नाश हित प्रभु चरणों में आया हूँ॥ · वेदनीय के नाशक सिद्धों को सादर वन्दन मेरा। अव्याबाधी सुख गुण पाऊँ नाश करूँ भव का फेरा ॥ ॐ ह्रीं वेदनीयकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं नि.। मोहतिमिर क्षय करने को प्रभु ज्ञान-दीप निज लाया हूँ। वेदनीय दो प्रकृति नाश हित प्रभु चरणों में आया हूँ॥ वेदनीय के नाशक सिद्धों को सादर वन्दन मेरा। अव्याबाधी सुख गुण पाऊँ नाश करूँ भव का फेरा॥ ॐ ह्रीं वेदनीयकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्योमोहान्धकारविनाशनाय दीपं नि.। अष्टकर्म-क्षय हेतु महाप्रभु ध्यान धूप निज लाया हूँ। वेदनीय दो प्रकृति नाश हित प्रभु चरणों में आया हूँ॥ वेदनीय के नाशक सिद्धों को सादर वन्दन मेरा । अव्याबाधी सुख गुण पाऊँ नाश करूँ भव का फेरा॥ ॐ ह्रीं वेदनीयकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अष्टकर्मविध्वंसनाय धूपं नि.।

Loading...

Page Navigation
1 ... 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98