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श्री सिद्धपरमेष्ठी विधान/३१
पूजन क्र. ५ वेदनीयकर्म विरहित श्री सिद्धपरमेष्ठी पूजन
स्थापना
(दोहा) वेदनीय को नाशकर, हुए सिद्ध भगवान । बार-बार वन्दन करूँ, पाऊँ पद निर्वाण ॥ भाव सहित पूजन करूँ, वन्दूँ बारम्बार ।
वेदनीय दुख नष्ट कर, पहुँचूँ भव के पार ॥ ॐ ह्रीं वेदनीयकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। ॐ ह्रीं वेदनीयकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिसमूह ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। ॐ ह्रीं वेदनीयकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिसमूह! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् ।
(छंद - ताटंक) जन्म जरादिक रोग विनाशक सम्यक् जल प्रभु लाया हूँ। वेदनीय दो प्रकृति नाश हित प्रभु चरणों में आया हूँ॥ वेदनीय के नाशक सिद्धों को सादर वन्दन मेरा।
अव्याबाधी सुख गुण पाऊँ नाश करूँ भव का फेरा॥ ॐ ह्रीं वेदनीयकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि.।
भवाताप नाशक समकित चंदन हे प्रभु मैं लाया हूँ। वेदनीय दो प्रकृति नाश हित. प्रभु चरणों में आया हूँ॥ वेदनीय के नाशक सिद्धों को सादर वन्दन मेरा ।
अव्याबाधी सुख गुण पाऊँ नाश करूँ भव का फेरा ॥ ॐ ह्रीं वेदनीयकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो संसारतापविनाशनाय चंदनं नि.।