Book Title: Siddha Parmeshthi Vidhan
Author(s): Rajmal Pavaiya
Publisher: Kundkund Pravachan Prasaran Samsthan

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Page 55
________________ श्री सिद्धपरमेष्ठी विधान/५२ पूजन क्र. ८ नामकर्म विरहित श्री सिद्धपरमेष्ठी पूजन स्थापना (छंद - कुण्डलिया) नामकर्म का नाश कर, हुए सिद्ध भगवान । नाशी प्रकृति तिरानवे, जय जय जय भगवान ॥ जय जय जय भगवान आत्मा को ही ध्याऊँ । आप कृपा शिवसुख पाने को निज गुण गाऊँ । निज गुण गाऊँ आश्रय लूँ मैं आत्मधर्म का। निश्चित. नाश करूँगा अब मैं नामकर्म का। ॐ ह्रीं नामकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिसमूह ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं नामकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिसमूह ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। ॐ ह्रीं नामकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिसमूह ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (दोहा) जन्म-मरण दुख क्षय करूँ, दो प्रभुयह आशीष । ज्ञान नीर अर्पित करूँ, जय जय सिद्ध महीश॥ नामकर्म की तिरानवे, प्रकृति विनाशक सिद्ध । अवगाहन गुण के धनी, सिद्ध महान प्रसिद्ध ॥ ॐ ह्रीं नामकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि.। भव-आतप का नाश कर, नष्ट करूँ भव-रोग। शीतल चंदन भेंटकर, पाऊँ धर्म-सुयोग। नामकर्म की तिरानवे, प्रकृति विनाशक सिद्ध । अवगाहन गुण के धनी, सिद्ध महान प्रसिद्ध ॥ ॐ ह्रीं नामकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो संसारतापविनाशनाय चंदनं नि.

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