Book Title: Siddha Parmeshthi Vidhan
Author(s): Rajmal Pavaiya
Publisher: Kundkund Pravachan Prasaran Samsthan

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Page 68
________________ श्री सिद्धपरमेष्ठी विधान/६५ नामकर्म की सर्व प्रकृतियाँ हैं तिरानवे भवदुख-मूल।। निज पुरुषार्थ शक्ति से सबको नाश करूँ मैं नाथ समूल ॥४९॥ ॐ ह्रीं शीतस्पर्शनामकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य नि.। उष्ण प्रकृति स्पर्श कर्म की निज बल से मैं करूँ विनाश। अब स्पर्श नामकर्म के आठ भेद सब कर दूँ नाश ॥ नामकर्म की सर्व प्रकृतियाँ हैं तिरानवे भवदुख-मूल । निज पुरुषार्थ शक्ति से सबको नाश करूँ मैं नाथ समूल ॥५०॥ ॐ ह्रीं उष्णस्पर्शनामकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य नि.। प्रभु स्निग्ध स्पर्श कर्म की निज बल से मैं करूँ विनाश। अब स्पर्श नामकर्म के आठ भेद सब कर दूँ नाश ।। नामकर्म की सर्व प्रकृतियाँ हैं तिरानवे भवदुख-मूल। निज पुरुषार्थ शक्ति से सबको नाश करूँ मैं नाथ समूल ॥५१॥ ॐ ह्रीं स्निग्धस्पर्शनामकविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य नि./ रुक्ष प्रकृति स्पर्श कर्म की निज बल से मैं करूँ विनाश। अब स्पर्श नामकर्म के आठ भेद सब कर दूँ नाश ॥ नामकर्म की सर्व प्रकृतियाँ हैं तिरानवे भवदुख-मूल । निज पुरुषार्थ शक्ति से सबको नाश करूँ मैं नाथ समूल ॥५२॥ ॐ ह्रीं रुक्षस्पर्शनामकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य नि.। कषाय प्रकृति है नामकर्म की इसका भी अब करूँ विनाश। . अब रस नामकर्म की पाँचों प्रकृति नाथ सब कर दूं नाश॥ नामकर्म की सर्व प्रकृतियाँ हैं तिरानवे भवदुख-मूल। निज पुरुषार्थ शक्ति से सबको नाश करूँ मैं नाथ समूल ॥५३॥ ॐ ह्रीं कषायरसनामकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य नि.। आम्ल प्रकृति है नामकर्म की इसका भी अब करूँ विनाश। अब रस नामकर्म की पाँचों प्रकृति नाथ सब कर दूं नाश॥

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