Book Title: Siddha Parmeshthi Vidhan
Author(s): Rajmal Pavaiya
Publisher: Kundkund Pravachan Prasaran Samsthan

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Page 96
________________ श्री सिद्धपरमेष्ठी विधान/९३ आषाढ़ निजानन्दी हो बन सकल ज्ञेय का ज्ञायक। आनन्द अतीन्द्रिय सागर पाऊँ बन त्रिभुवन-नायक ॥ श्रावण की हरियाली में रिम-झिम अनुभव रस बरसे। त्रैलोक्य सकल दर्शन कर प्रतिपल प्रतिक्षण बहु हरषे॥ पा श्रेष्ठ भाद्रपद अनुपम परिपूर्ण धर्म प्रकटाऊँ । सिद्धत्व स्वगुण को पाकर त्रैलोक्य शिखर पर जाऊँ॥ त्रय योग अभाव करूँ मैं सिद्धों की नगरी पाऊँ । निज मुक्तिकामिनी से अब परिणय कर शिवसुख पाऊँ॥ फिर बारह मास सदा ही आनन्द सहित बीतेंगे। सिद्धों को वन्दन कर हम अब दोषों से रीतेंगे। बस एक ध्येय हो अपना निर्मल स्वरूप गुणशाली। निज ज्ञान प्राप्ति के हित हम पाएँ समकित हरियाली॥ इस हरियाली को अपने जीवन में लाना होगा। षट् ऋतुओं के मौसम को इस बार जगाना होगा। विज्ञान ज्ञानघन अपना उज्ज्वल स्वभाव हम पाएँ। ध्यानाग्नि मध्य कर्मों को ईंधनवत् त्वरित जलाएँ। ॐ ह्रीं ज्ञानावरण-दर्शनावरण-वेदनीय-मोहनीय-आयु-नाम-गोत्रअंतराय सर्वकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो महाजयमालापूर्णाऱ्या निर्वपामीति स्वाहा। आशीर्वाद (दोहा) हो जाऊँ निष्कर्म प्रभु, करूँ आत्म-कल्याण। अष्टकर्म सब दहन कर, पाऊँ पद निर्वाण ॥ पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत्।

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