Book Title: Siddha Parmeshthi Vidhan
Author(s): Rajmal Pavaiya
Publisher: Kundkund Pravachan Prasaran Samsthan

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Page 95
________________ श्री सिद्धपरमेष्ठी विधान/९२। माया की छाया पाकर काया पायी दुखदायी। जड़-काया को क्षय करके पाऊँगा पद सुखदायी ॥ वैज्ञानिक. भेदज्ञान के मुझको भी भेद-ज्ञान दो। अपने दोनों हाथों से प्रभु मुझको आत्मज्ञान दो॥ | स्वाधीन सुखों की आशा मेरे उर में जागी है। भवसुख की अभिलाषा अब पूरी-पूरी भागी है। सम्यग्दर्शन की शोभा संयम से ही होती है। संयम की शोभा सम्यग्दर्शन से ही होती है। वसु कर्मों को क्षय करने का निश्चय अटल सुहाया। इसलिए प्रभो हर्षित हो मैं शरण आपकी आया। बारह मासों में हे प्रभु हैं सभी मास अति उत्तम । तत्त्वाभ्यास इनमें हो तो होते ये परमोत्तम । आश्विन में भेदज्ञान कर पूर्णिमा ज्ञान की पाऊँ । कार्तिक में ज्ञानप्रभा पा क्षायिक समकित प्रकटाऊँ॥ वैराग्य सहित मगसिर में अविरति को जय कर डालँ। फिर पौष मास में पावन निश्चय संयम दृढ़ पालूँ॥ इस माघ मास में अब तो सम्पूर्ण प्रमाद गला दूँ। बन पंचमहाव्रतधारी दुखमय संसार हिला दूँ॥ फागुन में होली खेलूँ ले रंग ध्यान के पावन । खेलूँ मैं आँख-मिचौली निज परिणति से मन-भावन ॥ निज चैत्र वसन्ती चिन्मय श्रेणी चढ़ने का मौसम । पा शुक्लध्यान की बेला अविकल्प ध्यान लूँ उत्तम ॥ वैशाख शिखर पर चढ़कर उर यथाख्यात प्रकटाऊँ। चारों कषाय क्षय करके कैवल्य ज्ञान निधि पाऊँ । अब ज्येष्ठ मास में त्रिभुवन का ज्येष्ठ चिदेश बनूँ मैं। घातिया चार का हर्ता अर्हत् परमेश बनूँ मैं ॥

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