Book Title: Siddha Parmeshthi Vidhan
Author(s): Rajmal Pavaiya
Publisher: Kundkund Pravachan Prasaran Samsthan

View full book text
Previous | Next

Page 87
________________ ___.. . श्री सिद्धपरमेष्ठी विधान/८४ क्रूर प्रकृति भोगांतराय की भोग भोगने में बाधक । इसको वह ही क्षय करता है जो होता निजात्म-साधक। अन्तराय की पाँचों प्रकृति विनायूँ करूँ आत्म-कल्याण। निज अनन्तवीर्य गुण प्रकटा पाऊँगा निज पद निर्वाण ॥३॥ ॐ ह्रीं भोगान्तरायकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य नि.। उपभोगांतराय की प्रकृति सदा बाधक उपभोगों में। इसको क्षय करने का बल है शुद्ध ज्ञान उपयोगों में॥ अन्तराय की पाँचों प्रकृति विनायूँ करूँ आत्म-कल्याण। निज अनन्तवीर्य गुण प्रकटा पाऊँगा निज पद निर्वाण ॥४॥ ॐ ह्रीं उपभोगान्तरायकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य नि.। दुष्ट प्रकृति वीर्यांतराय की सदा आत्मबल में बाधक। इसको वह ही क्षय करता है जो होता निजात्म साधक॥ अंतराय की पाँचों प्रकृति विनायूँ करूँ आत्म-कल्याण। निज अनन्तवीर्य गुण प्रकटा पाऊँगा निज पद निर्वाण ॥५॥ ॐ ह्रीं वीर्यान्तरायकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य नि.। ___ महार्घ्य . (गीत) ज्ञान होता है तो अज्ञान नहीं होता है। . ध्यान होता है तो अपध्यान नहीं होता है। . धर्म होता है तो अधर्म नहीं होता है। कर्म होता है तो निष्कर्म नहीं होता है। · सत्य होता है तो असत्य नहीं होता है। शील होता है तो कुशील नहीं होता है। क्रोध होता है तो क्षमा न कभी होती है। . - मान होता है तो विनय न कभी होती है। .

Loading...

Page Navigation
1 ... 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98