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श्री सिद्धपरमेष्ठी विधान / ५३
अक्षय पद की प्राप्ति हित, करूँ स्वयं का ध्यान । उत्तम अक्षत भेंटकर, पाऊँ पद अमलान ॥ नामकर्म की तिरानवे, प्रकृति विनाशक सिद्ध । अवगाहन गुण के धनी, सिद्ध महान प्रसिद्ध ॥ ॐ ह्रीं नामकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि.।
कामबाण के नाश हित, स्वगुण पुष्प बलवान । महाशील गुण प्राप्त कर, हो जाऊँ भगवान ॥ नामकर्म की तिरानवे, प्रकृति विनाशक सिद्ध । अवगाहन गुण के धनी, सिद्ध महान प्रसिद्ध ॥ ॐ ह्रीं नामकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं नि. । क्षुधारोग प्रभु क्षय करूँ, तज दूँ कर्माहार । सुचरु प्राप्त कर ज्ञानमय, हो जाऊँ अविकार ॥ नामकर्म की तिरानवे, प्रकृति विनाशक सिद्ध ।
अवगाहन गुण के धनी, सिद्ध महान प्रसिद्ध ॥
ॐ ह्रीं नामकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निं. । दीप चढ़ाऊँ ज्ञान के, मिथ्या - तिमिर निवार । केवलज्ञान महान पा, नाश करूँ संसार ॥ नामकर्म की तिरानवे, प्रकृति विनाशक सिद्ध ।
अवगाहन गुण के धनी, सिद्ध महान प्रसिद्ध ॥
ॐ ह्रीं नामकर्मविरहित श्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो मोहान्धकारविनाशनाय दीपं नि. ।
शुक्ल ध्यान की धूप से, करूँ कर्म अवसान । उत्तम सुख की प्राप्ति हित, पाऊँ पद निर्वाण ॥ नामकर्म की तिरानवे, प्रकृति विनाशक सिद्ध ।
अवगाहन गुण के धनी, सिद्ध महान प्रसिद्ध ॥
ॐ ह्रीं नामकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अष्टकर्मविध्वंसनाय धूपं नि./