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श्री सिद्धपरमेष्ठी विधान/४८
शाश्वत अक्षय पद प्रकटाऊँ, श्री सिद्ध प्रभुको नित ध्याऊँ।
आयुकर्म चौप्रकृति विनायूँ, सूक्ष्मत्व गुण शीघ्र प्रकायूँ॥ ॐ ह्रीं आयुकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अक्षयपदंप्राप्तये अक्षतान् नि .।
कामबाण की पीर मिटाऊँ, श्री सिद्ध प्रभु को नित ध्याऊँ।
आयुकर्म चौप्रकृति विनायूँ, सूक्ष्मत्व गुण शीघ्र प्रकायूँ॥ ॐ ह्रीं आयुकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्टिभ्यो कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं नि.।
क्षुधारोग का कष्ट मिटाऊँ, श्री सिद्ध प्रभु को नित ध्याऊँ।
आयुकर्म चौप्रकृति विनायूँ, सूक्ष्मत्व गुण शीघ्र प्रकायूँ॥ ॐ ह्रीं आयुकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं नि.।
मोह-तिमिर अज्ञान हटाऊँ, श्री सिद्ध प्रभु को नित ध्याऊँ।
आयुकर्म चौप्रकृति विनायूँ, सूक्ष्मत्व गुण शीघ्र प्रकाशुं॥ ॐ ह्रीं आयुकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो मोहान्धकारविनाशनाय दीपं नि./
अष्टकर्म सम्पूर्ण जलाऊँ, श्री सिद्ध प्रभु को नित ध्याऊँ। __ आयुकर्म चौप्रकृति विनाशें, सूक्ष्मत्व गुण शीघ्र प्रकायूँ॥ ॐ ह्रीं आयुकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अष्टकर्मविध्वंसनाय धूपं नि./
पूर्ण मोक्षफल हे प्रभु पाऊँ, श्री सिद्ध प्रभु को नित ध्याऊँ।
आयुकर्म चौप्रकृति विनायूँ, सूक्ष्मत्व गुण शीघ्र प्रकाशुं॥ ॐ ह्रीं आयुकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो महामोक्षफलप्राप्तये फलं नि.।
शाश्वत पद अनर्घ्यप्रकटाऊँ, श्री सिद्ध प्रभुको नित ध्याऊँ।
आयुकर्म चौप्रकृति विनायूँ, सूक्ष्मत्व गुण शीघ्र प्रकायूँ॥ ॐ ह्रीं आयुकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य नि.।