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श्री सिद्धपरमेष्ठी विधान/२७
अरहंत देव दर्शन अनंत गुणधारी।
नौ प्रकृति दर्शनावरणी के क्षयकारी॥ ॐ ह्रीं दर्शनावरणीकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो मोहान्धकारविनाशनाय दीपंनि.।
मैं शुक्लध्यान की धूप चढ़ाऊँ स्वामी। वसु कर्म नाशकर शिव पद पाऊँ नामी॥ अरहंत देव दर्शन अनंत गुणधारी।
नौ प्रकृति दर्शनावरणी के क्षयकारी॥ ॐ ह्रीं दर्शनावरणीकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अष्टकर्मविध्वंसनाय |
धूपं नि.।
निजआत्मध्यान कर महामोक्षफल पाऊँ। फल शुक्लध्यान काउर अविलंब सजाऊँ॥ अरहंत देव दर्शन अनंत गुणधारी ।
नौ प्रकृति दर्शनावरणी के क्षयकारी॥ ॐ ह्रीं दर्शनावरणीकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो मोक्षफलप्राप्तये फलं नि.।
पदवी अनर्घ्य पाने प्रभु निज को ध्याऊँ।.. निजगुण के अर्घ्य बनाऊँशिवसुखपाऊँ॥ अरहंत देव दर्शन अनंत गुणधारी।
नौ प्रकृति दर्शनावरणी के क्षयकारी॥ | ॐ ह्रीं दर्शनावरणीकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य नि.।
अर्ध्यावलि
(दोहा) दर्शन आवरणी प्रकृति, नौ को लूँ पहचान । दर्शन गुण की प्राप्ति हित, करूँ शीघ्र अवसान॥
(छंद - ताटंक) चक्षु दर्शनावरणी विनायूँ सम्यक् दृष्टा हो जाऊँ।
भेद दर्शनावरणी के नौ पूर्णतया प्रभु विघटाऊँ॥१॥ ॐ ह्रीं चक्षुदर्शनावरणीकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य नि.।।