Book Title: Siddha Parmeshthi Vidhan
Author(s): Rajmal Pavaiya
Publisher: Kundkund Pravachan Prasaran Samsthan

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Page 11
________________ श्री सिद्धपरमेष्ठी विधान/८ पूजन क्र. १ श्री सिद्ध पूजन स्थापना (छंद - ताटक) हे सिद्ध तुम्हारे वन्दन से उर में निर्मलता आती है। भव-भव के पातक कटते हैं पुण्यावलि शीश झुकाती है। तुम गुण चिन्तन से सहज देव होता स्वभाव का भान मुझे। है सिद्ध समान स्वपद मेरा हो जाता निर्मल ज्ञान मुझे॥ इसलिए नाथ पूजन करता कब तुम समान मैं बन जाऊँ। जिस पथ पर चल तुम सिद्ध हुए मैं भी चल सिद्ध स्वपद पाऊँ॥ ज्ञानावरणादिक अष्टकर्म को नष्ट करूँ ऐसा बल दो। निज अष्ट स्वगुण प्रकटै मुझमें सम्यक् पूजन का यह फल हो॥ ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्धपरमेष्ठिन् ! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्धपरमेष्ठिन् ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्धपरमेष्ठिन् ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (वीरछन्द) कर्म मलिन हूँ जन्म-जरा-मृतु को कैसे कर पाऊँ क्षय। निर्मल आत्मज्ञान जल दो प्रभु जन्म-मृत्यु पर पाऊँ जय॥ अजर अमर अविकल अविकारी अविनाशी अनन्त गुणधाम । नित्य निरंजन भवदुःख भंजन ज्ञानस्वभावी सिद्ध प्रणाम॥ ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्धपरमेष्ठिने जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि.। शीतल चंदन ताप मिटाता किन्तु नहीं मिटता भवताप। निज स्वभाव का चन्दन दो प्रभु मिटे राग का सब संताप ॥

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