Book Title: Shraman Dharm Jyot
Author(s): Abhaysagar
Publisher: Jain Shree Sangh

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Page 383
________________ : ३५० : સમ્યક્–ચારિત્ર વિભાગ મુક્તિના પછી નીચેની આરાધના કરવી. १. प्रथम इरिया० ४२१, पछी इच्छाकारेण० मतिज्ञानश्रुतज्ञान - अवधिज्ञान - मनः पर्यवज्ञान - केवलज्ञान ए पञ्चज्ञान आराधनार्थं करेमि काउ० वंदणवत्तियाए० अण्णत्थ ही पांच लोगस्स ( स ) ने। ४७ ४री प्रगट लोगस्स डेवे २. इच्छाकारेण० पञ्च महाव्रत - आराधनार्थ काउ० करु १ इच्छ पञ्च महाव्रत वंदण० अण्णत्थ० ही ५ लोगस्स (पू) ४७० ४री प्रगट लोगस्स डेव।. 3. इच्छाकारेण श्री सिद्धपद - आराधनार्थ ज्ञानावरणीयदर्शनावरणीय - वेदनीय- मोहनीय - आयुष्य -- नाम- गोत्र-अंतराय ए अष्टकर्म - क्षयार्थ काउ० करु' ? दच्छ श्री सिद्ध० बंदण० अण्ण त्थ डी ८ लोगस्स ० ( स ) ना ४७ ४री प्रगट लोगस्स डेवे ४. इच्छाकारेण० अष्ट प्रवचनमाता आराधनार्थ काठ० करूं? इच्छ' अष्ट-प्रवचन वंदण० अण्णत्थ डी ८ लोगस्स. (सपूर्ण) | ४ ४री प्रगट लोगस्स हेवा. भ, इच्छाकारेण० अरिहंतपद सिद्धपद- आचार्यपद उपाध्याय - पद - साधुपद - दर्शनपद - ज्ञानपद - चारित्रपद - तपपद ए नवपद आराधनार्थ काउ० करु १ इच्छ श्री नवपद - आराधनार्थ - बंदण० अण्वस्थ ही लोगस्स ( अ ) मे ४७० ४री प्रगट लोगस्स डेवे

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