Book Title: Santoka Vachnamrut
Author(s): Rangnath Ramchandra Diwakar
Publisher: Sasta Sahitya Mandal

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Page 14
________________ ' विषय-प्रवेश वचन - साहित्य - परिचय इस ग्रंथका नाम है । इसके दो खंड हैं । पहला " परिचय खंड " है और दूसरा " वचनामृत खंड " । पहले खंड में वचन - साहित्य का सामान्य परिचय दिया है । वचन साहित्य किसी एक महान् साहित्यिक द्वारा लिखी गई साहित्यिक कृति नहीं है । वचन - साहित्य अनेक शैव संतों द्वारा समय-समय पर कहे गये अनंत वचन हैं । इस ग्रंथ में उन वचनों में से कुछ वचनों का संपादन किया गया है । प्रस्तुत " वचन साहित्य वचन- साहित्यको कन्नड़ में इन वचनों का चयन और संपादन कन्नड़ भाषाके विद्वान् साहित्यिक और प्रसिद्ध पत्रकार श्री रंगनाथ रामचंद्र दिवाकरने किया है । दिवाकरजीने, जब वे १९३२ में हिडलगी के बंदीगृह में थे, इन वचनों का संपादन करके 'वचनशास्त्र - रहस्य' नाम से एक बड़ा ग्रंथ लिखा । जब वह ग्रंथ प्रकाशित हुआ तब कन्नड़ भाषाके कुछ विद्वान् साहित्यिकों ने उस ग्रंथ के विषय में लिखा था कि लोकमान्य तिलकजीने मांडलेके जेल में गीता रहस्य लिखा और दिवाकरजीने हिंडलगी जेल में वचनशास्त्र - रहस्य । "परिचय" उसी ग्रंथ का संक्षेपमें किया हुआ स्वतंत्र हिंदी भावानुवाद है । वचन -शास्त्र कहने की परिपाटी है । शास्त्रका अर्थ मोक्ष-शास्त्र से है, मोक्षका अर्थ मनुष्यकी नित्य निर्दोष आनंदकी स्थिति, अविरल शाश्वत सुख-स्थिति | वह मानव मात्रका प्रात्यंतिक ध्येय हैं । प्रत्येक प्राणी शाश्वत सुख प्राप्त करनेका प्रयास करता है । वह महान् ध्येय कैसे प्राप्त करना चाहिए ? उसके साधन क्या हैं ? उन साधनोंमें क्या बाधाएं हैं ? उसमें कौन-से धोखे हैं ? उनका निवारण कैसे करना चाहिए ? श्रादिका सांगोपांग विवेचन विश्लेषण करना इस शास्त्र का क्षेत्र है । यही कार्य वचनकारोंने अपने वचनों द्वारा किया है, इसलिए उसको शास्त्र कहते हैं और शास्त्र शब्द के पहले जो वचन शब्द लगा है वह शैलीका अर्थ बोधक है | वचन कन्नड़ साहित्यकी एक विशिष्ट प्रकारकी गद्यशैली है । अर्थात् वचनशास्त्रका अर्थ " वचन शैली में लिखा गया मोक्ष- शास्त्र" है । मोक्ष - शास्त्र भारतके प्राचीनतम शास्त्रों में से एक है । इस विषय पर भारत के अनेक महापुरुषोंने चिंतन, मनन तथा प्रयोग किये हैं । संस्कृत भाषा में इसके अनेकानेक ग्रंथ उपलब्ध हैं । वेद, उपनिषद्, गीता, आगम आदि अनेक प्रकारके असंख्य ग्रंथ हैं । किंतु कालांतरसे संस्कृत भाषा जन-भाषा नहीं रही । ऐसा हुआ कि जनताकी भाषा अलग और विद्वान शास्त्रज्ञोंकी भाषा अलग हो गई,

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