________________
..
..
S
ee
संक्षिा जैन इतिहाम। कायम नहीं थे-जाति और कुछ शेयवहाकी चीज है। उसे लौकिक जीवनको पुविधा के लिये वहीं तक मानना ठीक है, वहां सक महिमा धर्मको विगधना न हो । जाति और कुलको लेकर यदि मानव मानवमें उच्च नीचका मेद हले तो वह बुग है। जिनेन्द्रने उमे जानिदोर कुन मन कहा है और मद्यकी नाह उम्को त्याज्य बताया है। जनशासनमें जैनल ही स्वाय चीज है-उस जैन कुल्में मी ममोपजीवी मान कम्मलन होते माये हैं . भामगांची भार्य, दविर, मपुर व मग त्रय, ३५. शुद्र और विद्याधर गक्षस, बाना मार सनी व गान३ जिन्न्द्रक क्त जैनी रहे है। वास्तव जन जन तक है जो हिंसा धर्मका हिमायती
और उप चावल है। एंपा जैन विश्वशान्तिका क्षक और मानके आमविकाममा सनक रहा है। मनरव से मतलब उस महा मानवस है जिसका काम विश्व है और विश्वमें जिसका सामन चला है। जैन पुगों में विश्वव्यापी और शामन का इतिहाप सुरक्षित है। उनमें मानवीय मभ्य जबनके विकाशका इतिहास छुश हुमा है। पार्मिकताके चल से बाहर निकाय का सं महाशमें मनकी भाश्यकता है। संक्षात न इतिहास' के प्रथम माममें हमने उसकी विहंगम रूपरेखा उपस्थित की थ; किन्तु जैन पुगयों का तो सूक्ष्म मध्ययन ऐतिहासिक दृष्टसे नाना नायक है।
प्रारम्भिक इतिहास बैन मुगलों में मानवका मानि: इतिहास, सेि प E देखिशासिकार उसका विवाद