Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 155
________________ १३८] in श्री.दिनाहिये, जीनका कारनाम मुसबा गौर हादविधापति'-वाह विधानों के माता महाते थे। उनकी एक अन्य स्कना 'यशोधरवरिश' मी।।' १२वीं शतानि वादीमसिंह बोपदेव गवचिन्तामणि और क्षात्रचूडामणि' नामक चम्पकालय श्री संत साहित्यको बोलनीय रचनायें हैं। मुनि कल्याणकीर्ति रचित 'जिया कहोदय', 'ज्ञानचन्द्र.भ्युदय', 'तपमेदाटक', 'सिवराज', watषर परित्र मावि ब भी उल्लेखनीय है । मेय समगुरु कारक मठाधीश श्री मिलकीतिजीके वह शिष्य थे। नोने का सं. १३५० में 'बिनयज्ञ फकोदय' या था। 'काम' 'मनसे' गादि कमलतियां भी उनकी यी हुई है।" पाव मुनिका बयानहोस' ज्योतिष शासकी बल्लेखनीयरमा ।कारको पांच-भाववंशीय रामा पाण्यापति भी संस्कृत साके यो कवि थे। उनका का हुमा 'भयानल Sures है।बहारक चालीर्तिमीने 'गीतवीतराग' की रचना करके कति गोरके गीत-गोविन्द ' महाकान्यकी समकोटिकी उतम रचना जैन Prem wलमें भी कम करती है। महाकवी सगीत शासके भाता थे, इसलिये उनकी बहना संगीत समोर साको ठोकसे निकाली है। वहीतिका बसस्थान प्राक्टिवेशान्तर्गत सिंj .-CSL, P. 286495.डॉ. मरियाने इसी प्रवियो और एलीमा स्पषिता । पदिगो की बालि भाले । की सोचना बार।

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