Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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१४६] संक्षिप्त बैन इतिहास । दुईपोतकी विशाकार मन्य प्रतिबिध है। सन् १.४४ ६० में भन्दुमजाक नामक राजदूत ईगनसे भारत माया बा। उमनें इम मति और मंदिरको देखकर लिखा था कि उसके समान लोकमें दूपी वस्तु नहीं है। मंदिरचा वनका है। उस सपको बह पीताका बनाता है और विशालकाय प्रतिमाको निरी सोने की लिखता है, जिसकी अखिम दोका बड़े हुये थे। वह लिखता है कि मूर्ति स्तनमे नाई गई है कि वह सर्वथा मुहौल भोर कलामय है. मानो को मोर ही निहार रही है। ज्ञात होता है कि उस समय मंदिर से ही बनकर तैयार हुआ था और उसपर सुनहरी रंगकी dिi इसलिये ही भन्दुर रज्जाकको उसके पीताका होनेका प्रम होगा पौर मूर्तिको उसने सोनकी लिख दी। माज भी जैन मंदिरों में पीतकी मूर्तियों पर सोनेकी लुक फिरी हुई देखकर बहुत से लोग को सोनेकी मान बेटते थे . साशित: उस समय मूडस्ट्री में एक बड़े कर कलामय जैन मंदिर बोम्म बने हुये थे। वहांक जैन सवालों गम महस मा दर्शनीय थे।
(३) अंग्रेरि मैन केन्द्र होने के साती कामय
1-MAia distance of three pansings from Mangalor, he (Abd-es-Razzak) saw a temple of idols, which hlas ir.. equal' in the universe...... It is en riely formed of cast bronze. le ha's four estrades. Upon that in the frout stands a human Boguto, of great size made of gold; its eyes are formed of two rubies, placed so artistically that the slaine seems in luok met you. The whole is worked with wonderful' deliciwj perfection." -Major, India in the Agtk. Cette derni . p.-20.

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