Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 157
________________ १४.]. संचित चैन इतिहास | भी जैन थे। मल्लिकार्जुनगे 'सुक्तिसुचार्णव' नामक कलड़ अन्य - सार्वभावसे दिखा। उसके भादि मंगलाचरणमें जिनेन्द्रदेवको नमस्कार किया, परन्तु भीतर सुक्तियों में निग स्मार्त-त्र सण-धर्म भर दिया । बाम विद्वान यह देखकर माचर्यचकित है !' मल्लिकार्जुनका पुत्र 'केशिराज द्वि० (१२६० ई० ) भी कवि था । उसके रचे हुबे चोकपालक चरित, सुभद्राहाण, प्रदोषचंद्र, किरात और शब्दमणिदर्पण ये, परन्तु उपलब्य केवळ अंतिम ग्रंथ है। यह कलड़ व्याकरणका अद्वितीय ग्रंथ है।" कवि वृचिराज (११७३ ई०) महाकवि पोलके समान · मार्मिक श्रेष्टकवि थे, परंतु उनकी कोई भी रचना उपलब्ध नहीं है। ककि - बोय्पण पंडित सुमनोजंस प्रतिष्ठा प्राप्त प्रसिद्ध कवि थे। कवि अगाल (१९८९ ६०) कविकुल ककमवासयूमा घिनाथ, काव्यकर्णवार, भारती बालनेत्र, साहित्य विद्याविनोद, जिनसमय सरस्सार के लि-मराक यादि विश्दों से सुशोभित थे। वह किसी राजदरबार में उच्चकोटिके कवि थे। उनका रवा हुआ 'चंद्रप्रभपुगण' मिळता है। 'पार्श्वपंडित' - (१२०५ ई०) सौंदसिके स्टुराजा कार्तवीर्य चतुर्थका समाकवि था । पार्श्वपंडित कविकुलतिलक कहलाते थे। इनका पार्श्वनाथ पुराण' अद्वितीय गद्यपद्यमय ग्रन्थ है। कवि जम भी अपने समयके प्रसिद्ध कवि थे और मल्लिकार्जुन के साले थे। चोकुरुके राजा नरसिंहदेव के वह सभाकवि, सेनानायक और मंत्री भी थे। वह एक बड़े धर्मास्या • 6 १- मैभारि० १९३१, पृ० ८०. २-कमेक०, १० २९. 6. • Jowal-Mirror of Grammar " remains to this day the standard early authority on the Kannada language. -Prof. 8. R. Sharma.

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