________________
१.] संक्षिा बैन इतिहास। . . या। नेमिने इस शिक्षाकी नृशंसता महाभारतमें घटित महान् मानाहत्याकाण्डमें अपनी, गांखोंसे देखी थी। महाभारत युद्ध में उन्होंने सक्रिय भाग लिया था। मानवके नैतिक पतनके उस मन्यतम भयानक
को देखकर उनका विवेक जागृत हुआ होगा-तभी तो नेमि पशुओंकी विपिनाहट सुनकर श्रमण साधनाके साधक बने थे। कोकका मानव तो गर्थिक व्यक्तित्वका पुजारी बना हुआ था। द्रोण
सामाचार्य अपनी मान-रक्षाके लिये पंचालके दो भाग करानेमें कारण बना था। धर्ममूर्ति युधिष्ठिर सती द्रौपदीको जुएमें दाव पर लगा बैठे थे। यादव मुगपानसे अपने कुलका ही नाश कर बैठे थे। मिने कामिनी कंचन और मद्य मांगके विरुद्ध बगायत की। उन्होंने अपना विवाह नहीं किया-बगत चढ़ीकी चढ़ी रह गई। नेमि श्रमण माधु हुये तो उनकी भावो पत्नी गजुल भी पीछे नहीं-वह साध्वी हो गई । लोकमें तहलका मच गया । उसने रुककर कुछ सोचा और तीकर नमिक बहिसामई उपदेशसे वह प्रभावित हुभा । मानव समाजमें प्रतिक्रिया जन्मी । भारतमें उपनिषदों द्वारा भात्मविद्याका प्रचार किया गया। भारतके बाहर भी अहिंसा बळाती हुई। किन्तु हिंसा ही मिटनेवाली न थी। पशुयोंके साथ शुष्क शान और हठयोगको अपनाया गया। अनेक मत प्रतिक मागे जाये, बिनोंने मनमाने ढंगसे हिंसा-बहिंसा समन्वय कराने के प्रयत्न दिये। मगवान पार्श्वनाथने हिंसा-संस्कृति और दिगम्बर योगमुद्राको गाये बड़ाया महिला वर्मका प्रभाव को कबापी हुमा । ईरानमें हो F IR मासान पानाच' नामक पुस्तक (बस) देखे।