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विजयनगरकी शासन व्यवस्थापनधर्म। । १२५ सतम्बा , पान्तु एक अन्य स्तनिधि वेगाम बिकेके निपाणी नामक स्थानसे दक्षिण दिशामें दो मीका। बार भी जैन मंदिरोंक संबर से प्राचीन स्थान सिद्ध करते हैं।' सत्रहवी शताब्दिमें इस स्वनिरिकी गणना तीयामें होती थी। यह बात साम्य साधु शीकविम्यके निम्नलिखित उल्लेलसे होती है बो उदोंने अपनी 'तीर्धमाग" में लिखा है:
"चारणगिरि नवनिधि पास, रायबाग हुकेरी बास । देव पणा प्रावक धनवंत, पंचमना तहं बहु सतवंत ॥१०॥ पंचम वनीक डीपी कंसार, वणकर चोथो भावक सार । भोजन मेला कोइ नवि करि, वैगंबर श्रावक ते सिरि॥१०॥ शिवातणी सीनि वली जैन, मरहठ देसि रहि आधीन । तुलजादेवी सेवि घणा, परता पूरि सेवक तणा ॥१०॥"
इस उल्लेखसे उस समय पंचम, छीपी, कंसार वणका और चतुर्थ पातिके भावकोंका मस्तिस्य भी प्रमाणित होता है, उनमें वात्सल्य धर्मका इतना अभाव था कि वे साथ २ बैठकर भोजन भी नहीं कर सकते थे। यह वर्णाश्रमी हिन्दुधर्मका प्रभाव का कि जिसने भावकके मूल सम्यक्त्व गुणोंसे मी जैनोंको गहिर्मुख कर दिया था। उस समयके यह बैनी राबवागके निकट उपस्थित तनिधिको वीरत मानते थे। मावस ऐसा होता है कि सोहगम जिलेके प्राचीन स्तनिधि तीर्थकी पसिद्धिको सुनकर और यहां पहुंच न सकनके कारण उप महाराष्ट्र देख उसकी पुनः स्थापना की गई थी। की पाश्वनाथ मति
1-JA., X. 49-52.