Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 145
________________ १९८] संक्ति नलिकास। हब गुरुमोंकी पा 'दरे- के नामसे प्रसिद्ध होगई की। इस गुरुकुल मुनि भद्रदेव प्रसात थे। न्होंने हिसगावस्तिका निर्माण किया जौर मुलगुंडके जिनमंदिरका विस्तार वडाबाबा। उसका समय सेवगणसेवा-सेनगणके नाचार्य इन यतिरामका बादर करते थे। न्होंने सपथरण करके समाधिमरण किया था। पन्तसमय मी र मागमका व्याख्यान करते रहे थे। उनके समाधि स्थल पर उनके शिष्य पारिपेणदेवने एक निधि बनाई थी। हुलिगेरे। सोहराब तालुकमै एक अन्य बेनकेन्द्र हुगिरे नामक बा। सन् १९८३१० के एक शिलालेखसे शात होता है कि हुबिगोके मालम-पर्वात् पणिक संघ अपनी उदारता के लिए प्रसिद्ध थे। दुब्गेिरेमें इनार, कोण्डारे, हानुगड, चिकविगलिगे, हरियाबिगलिगे, बाचौगानाह, होसनार, कम्बुनालिगे, ऐडालिगे. हिरिक मागि, चिकमहाकिगे, बम्याकिनाड, हेदनाड, कृजिनाड, होरना, कोनाड, गुत्तिमष्टादशकम्यण, बोलविगेरेनाड, होबत्तिनाड, हसिके इत्यादि स्थानों के पणिक एकत्रित हुये थे। उन सबने मिककर कुग्गेि. की संकलिमसादिको दान दिया और शासनपत्र लिखा था । उससमक प्रधान-दण्डाषिप मुद भी उपस्थित थे। मुद दण्डनायक पृथ्वीसेट्टि' पहनते थे। वह जैन श्रेष्टियों में उस समय एकास थे। इन बणिक संघोंके पिकांश सदस्य यदि इसममय बीर शेष धर्म में दीक्षित हो गरे, अंत पने पूर्वजों धर्म बैनमतको भा नहीं गये थे।' १-40 • ३१७. -वही, पृ. ११-१३८

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