Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 148
________________ विजयनगरकी शालानधर्म। । १९९५ डिमिति कामता वाहन केन्द्रोंसे तामिक देश बेनपक नातसास ताता है। तामिळनार में कुहगोडका जैन मन्दिर पसिद्ध था। उसको रामराज मोडेगाके पौत्र और हिमायके ज्येष्ठ माग राजपने अपने पिता मलिग मोडेलके पु०प हेतु ममदान दिक था। यह दान मम्राट् सदाशिवायके शासनकालमें दिया गया था।' चिकानसोगेके मादिनाप नामक बसी जिनमंदिर में बादश्वर, शांतीपर और चन्द्रनाथ तीर्थकरों की मूर्तियां ब्रमणों के नेता चिकमयके पुत्र और चारुकीर्ति पंडिनदेशके शिष्य पंडितरपने १५८५ १० पति कगकर विराजमान कई थी। विकासोगे इस समय भी जैनोंका केन्द्र बना हुआ था। पाकुरु, मलिक आदि केन्द्र । तुलादेशमें भी जनों के केन्द्रम्यान पाकुरु, भूहिक, पडणम्बूक, हिमार और कापू नामक नगर थे। बाहारु तो तुलादेशकी गजबानी मी सी थी। वहांका मादीपामेधा पनि नामक मित्र मंदिर प्रसिद्ध था। उस मंदिको सांतार नसभाबने सन् १९०८ में दान दिया था । सन् १९९९-१५०० के म उसी मंदिको श्री चाहकीर्ति दिने भी दान दिया था। मंगर तालुका महिक और परपणम्पूरुके मैन मंदिर रल्लेखनीय थे। पापणम्पूरुकी inla सदिको सन् १५१२ में किसी गमकुमारने बान दिया था। हिमहरि बोकनावर बसविल्यात दी। और सिदिला होगा ससमय उस १-०, १. १५८-१५९।


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