Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 152
________________ विजयनगरकी शासबसस्थानधर्म। [१३५ वषिष्ठता घोषित किया था। इनके शिष्य का सकसहिने नागमंगाय न १६८० में भी विमाय पाया निर्माण करावा । पेनुगोड भी बैन केन्द्र था। वह पार्श्वनावपस्सी बी, जिसके पास ही जिनमूषण भट्टारकके शिष्य नागमयकी निषषिकी।' सकार.जैन धर्म विजयनगर साम्राज्यमें अपना मापाकी मस्तिस बनाये हुपेया। ममता उसके मार्य प से शानपान और प्रभावकारी नहीं थे, मो शासकोंको जैन धर्मका मलालु बनाये सते। फिर भी वे समयके अनुसार बदलते हुये बैन धर्मके पयामें बहीन येभोर antasi ससकोंको मावित करने में सफल होते थे। का दियमासको भी उसना महत्व प्राप्त नसा क्योंकि उनका स्वान सपारी महारकोंने लि। किन्तु इसका भी बही कि दिगम्स मुनियों की मान्यतामें कोई मन्तर पहावा बिहे ही वैसी पूज्य हटिस देखे .ते थे। उनमें साधुवेषी, उदरपोषक मधुनोंका जमाव नहीं'; किन्तु ऐसे माधुरेषियों की खुली भर्समा की माती बी-शिमलों में भी उनका बलख हुआ मिकता है। सारांशतः बैन संघमें इस समय गहरं परिवर्तन हुए थे। nokan -

Loading...

Page Navigation
1 ... 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171