Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 146
________________ विजयनगरकी शासन व्यवस्था बैनधर्म । [११९ शबदुर्ग और दानवुरूपाइ । बेकारी और कुप्पट मिकोंमें रामदुर्ग और दाममुरूपा बैन केन्द्र थे। शबदुर्गों मूळ संबके भाषायोका पह था । इस संपके सारस्वत गच्छ कास्कारगण कुन्दकुन्दान्यय के माचार्य अमरकी र्तिके शिष्य मुनि मापनन्दि थे । उनके उपदेशसे सम्राट् हरिहर प्रथमके शासन कालमें जैन श्रेष्टि भोगराजने शान्तिनाथ जिनेश्वरकी प्रतिमा प्रतिनि कराई थी। रामभागसे उपब्ब्य रससिद्ध मूर्तियों के नासन लेखसे मूकसंघ चन्द्रभूति और मापनीय संघ के चन्द्रेन्द्र, बाद मौर तिम्मन्न नामक प्रायका पता चलता है। इससे भी रामदुर्ग केन्द्र होना है। दावुपके जैन व्यापारी प्रसिद्ध थे। बढी उनकी विधि मिली है।' शृङ्गेरि व नरसिंहराजपुर । शृङ्गेरिडोटस काळसे ही जैन केन्द्र था। वह नरसिंहराजपुरसे प्राचीन था। नरसिंहराजपुरकी प्रसिद्धि तो चौदहवीं शताब्दी के प्रारंभ से ही हुई है। वहाँ 'शान्तिनाथ बस्ती' नामक एक जिनमंदिर है, जिसके मुकनायक शान्तिनायकी मूर्ति सन् १३०० की प्रतिष्ठित मानी जाती है। मूर्निकी स्थापना उद्धरेकी बगियन्येगन्ति नामक मार्मिकाकी शिष्या चन्दियकाने कराई थी। सोडवीं शताब्दी तक नरसिहरानपुर एक समृद्धिशाकी चैन केन्द्र था। बहकी 'चन्द्रनाथ बस्ती' नामक जिनमंदिरमें विराजमान चतुर्विंशतितीर्थंकर और जगन् सीकरी मूर्तियों के शासन-लेखोसे स्पष्ट है कि बोंगारदेवी से डिके १- मे०, पृ० ३३८-११९०

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