Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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१३) संकि nिent पुत्र दोङग सेट्टिने पनाविशति तीन महिने प्रतिष्ठा कराई बी गौर नमिसेडिके पुत्र गुम्मण सेटिने अन्त तीकी मूर्ति पशिक्षित कर सिंगनगद्दे जिन मंदिस्में विराजमान की थी।' क्छनावबस्तीके मूकनायक चन्द्रप्रमकी मूर्ति श्वेतापानको इतनी सुंभार है कि मानों माठ वर्षका बालक ही बैठा हो- कोर बनाहमाकी है।हमदा नदी से निकालकर विराजमान की गई थी।
पार्श्ववस्ती' मंदिर । शेरिकी पावनायवस्ती नामक जिनमंदिक्ष १२वीजान्दिन है, बो नगरके मध्यभागमें है मौर जैनों के प्रमुखको पकरा है। १६वीं शताभिके मध्य तक शरिमें बैन यात्रीगण गाते रहे थे। सन् १५२३ में देवनसेष्टिने बनन्तनाबकी प्रतिमा इस मंदिस्में विराजमान की बा। बोम्जरासंट्टिन चन्द्रनायमूर्तिकी पतिष्ठा कराई थी।
महगिरिमें मन् १५३१ में एक जिनमंदिर था, जिसको योन्दिातिमरपकी पत्नी वयम्ने दान दिया था। उनके गुरु मल्लिनाव देव थे।
जिनंन्द्रमंगलम् । इनके अतिरिक्त छोटे छोटे चैन केन्द्र भी विजयनगर सामने बिलो हुये मिळते थे। सन् १५३३-३४ के एक शिणसाने विदित है कि सम्राट अच्युत देवगतके वासमा पुरय पास.
स्तन मिनेन्द्रमंगलम् गोर बम्जुको? बोसनी । पिनलगाम नाम अनत्वका बोलब म' .
१-पड़ी, .. १५६. २-411 2
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