Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 117
________________ १..] ... संविबेन इतिहास : हुमाया। सन् १५९८ में उन्होंने कोप प्रामके सावन वायके म. पार्श्वनायके निमित भी दान दिया था। पनायकने इन भगवान्की मूर्ति प्रतिष्ठित कराई थी। सन् १९१६ १० में हमति भैरवेन्द्रने कारक के विशालकाय गोमटेश्वर-मूर्तिका मामस्तकाभिषेक उत्सब बड़ी शानसे मनाया बा। भैरवेन्द्रने ककि पदम्को भाश्रय दिया था, जिन्होंने भ० तिकीर्तिकी नाज्ञानुसार •कारका-गोमटेश्वर-चरिते ' प्रवरचा भी। हिरियङ्गाडिकी गम्मनपरबस्ती नामक जिन मंदिरको भी संभवतः इन्हीं भैरवराज मोरेयरने दान दिया। ही इमडि भैरवनरेशका एक शिगलेख कारकककी पहाड़ी र स्थित चौमुखा मंदिरमें निम्न प्रकार है: सारांशतः कारकरके भैरव पासुनरेशों द्वारा बैन धर्मकी उमति विशेष हुई थी। विजयनगर कारके वे स्वाधीन शासक थे। “श्री जिनेन्द्रकी कृपास भैरवेन्द्रकी जय हो। श्री पार्श्वनाम सुमति ! मी नेमि बिन बळक यश दें। मी बाह, मल्लि, मुक्त ऐप है। पोम्बुचाकी पावती देवी इच्छा पूर्ण करे। पनसोगाके देवीगणके गुरु कतिकीर्तिके उपदेशसे सोमकुली, जिदपकुडोल्पा, मेव राजाकी बहन गुम्मतम्बाके पुत्र, पोमच्चपुरके स्वामी, ६१ राबायो मुरूप, गनगाके रामा, न्यायशासके ज्ञाता बापगोत्री हमति भैरवने कविका (कारकर) की पाबनगरी में भी गोमटेक्साके ..- .. ३८५। १-मे माdme,

Loading...

Page Navigation
1 ... 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171