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विजयनगरकी शासन व्यवस्थापनधर्म । [११७ नोंको बास देते थे तो राज्यसे उनका संरक्षण किया जाता बार पहले ही पाठक पढ़ चुके हैं। इस प्रकार मनता भी जैनधर्मकै मारिसक वातावरणमें मुख अनुभव का सीबी। उस समय जैनकेन्द्रोम शंगेरि सहस भी स्वान थे जो फसे जैन सर मतोंके गहने हुवे थे। प्रमुख और केन्द्रस्थान ये थे । भगणवेल्गोल, कोपण, कुश्ट्रा, उद्धरे, शंगेरि, मन्दसिके, कोलापुर नादि ।
श्रवणबेलगोल। श्रवणबेलगोल पुगवनकाल से ही एक महान् तीर्थरूपमें मान्यता या जैनों मोर वैष्णवों में परस्पर असहिष्णुभाव बढ़ गया तो सबाट
करावने दोनों में सन्धि कागदी थी, यह किला माचुका है। इस समय अपनवेलगोलके गोम्मट्टदेवको रक्षाका भार श्री वैष्णव मेवा सातव्य पर पड़ा बाबो तिरुमलेके निवासी थे। श्री गोम्मटदेवकी विशाल मूर्ति उनके संरक्षणमें रहकर मान भी कोको भारतीय गोर बैन बादर्शको व्यक्त कर रही है। साम्पदायिक-सहिष्णुमाया
कैसा सुखद दृष्टांत है। उस समय सभी नी सानंद अषणपेस्गो. की यात्रा करते थे। बीस सिपाही गोमटेश्वर-मतिकी रक्षा के लिए हर समय नियत रहते थे।' सम्राट बुकरायन बहाक सभी मसिन बीगोंदार काकर उन्हें नयनाभिराम बना दिया था। देवराय प्रथमकी रानी भीमादेवीने काही मंगायी-बस्ती में शांतिनावस्वामीकी मतिको पतितापित किया था। इस मंदिको समकियोंमें शिरोमणि मंगावी मानकी (Dancing sil) बाबा
हा .