Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 132
________________ विजयनगरकी शासन व्यवस्वां जनधर्म । (११५ डरता है। दक्षिण भारत के इतिहासमें इसने दीर्घकातक शासन व संभागनेवाला कोई दूसरा सेनापति नहीं दिखता! महान् रुगना किन्तु वह विदित नहीं कि उन्होंने किस स्थान किस समय अपना गौरवशाली इह जीवन समा किया था।' दण्डेश चप्प। इरुगप्पके भाई दण्देश वैचप्प भी एक त्मिा बैनी थे। सन् १९२२ में श्रवणबेळगोळके एक शिलालेखमें उनका बल्लेख भन्यामनी' रूपमें हुमा है। रुगप्पकी भांति यह भी धर्ममार्गको पवित्र करनेगले कहे गये हैं। (पवित्रीकृत-धर्ममार्गान ) मगद् विजेता मी वह कहलाते थे। सन् १५२० में वेचदण्ड नायक मम्राट् देवराव द्वितीयके महाप्रधान थे। इस समय उन्होंने समाज्ञ नुसार बेलगोको गोमटेशकी के लिये बेलमे प्रामकी वृत्ति प्रदान की थी। कूषिराज प्रधान मादि राजकर्मचारी। रुगक समकालीन राबकर्मचारियोंमें कूचिराम ब्रामण, महा पवान गोपचार, गुण्डदण्डनाथ प्रमृति प्रमुरूप व्यक्ति थे। श्री कृषिजनाचार्य चन्द्रकीर्तिदेयके शिष्य थे, जिनके गुरु मूबसंव इंगुळेश्वर पलिके मार्य शुभचंददेव थे। इनोंने सन् १५०.के. संगमग कोणम चंद्रप्रम भगवान् प्रतिष्ठित काये थे। महा पान गोप चाम्। निदुःनक दुर्गके अध्यक्ष थे। जैनसंपके जैनेन्द्र. समयाम्बुषि-द्धन-पूर्ण-पन्द्र' कहते थे। उनका वंश जैनताके कि १ ०, पृ.१५-१... .२- ०, ५. १५.. ३-मे०, १...-., १९८.८

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