Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 124
________________ विजयनगर की शासन व्यवश्था जैनधर्म। २०७ 'नाका' मला गौर उन्होंने भी जिनमंदिको दान देकर अपनी उस्ताका परिचय दिया। इस मंदिरकी व्यवस्था कन्दणिके तीर्थके श्री मनन्दि आचार्य करते थे।' सावन्त मुद्दय्य । सन् १२०७ ई० में कुश्टूरम साबन्त मुहय्यने भी एक सुंदर जिनमंदिर बनवाया था | मूकसंघ काणू' गण तित्रिणी कगच्छके अनंतकीर्ति भट्टारक उनके गुरु थे। बल्लालदेव के राज्य-भूषण वह समझे नाते थे । वह धर्मात्मा और दानवीर श्रावक थे। खेचमूपतिके वह बोम्य उत्तराधिकारी थे। मार्गुडि नामक स्थान पर भी उन्होंने जिन मन्दिर बनाकर दान दिया था । १२१३ में कुप्पटूग्में श्री कलितकीर्तिमुनिके शिष्य शुभचन्द्रने समाधिमरण किया था। गोप महाप्रभू । कुप्यपुर के प्रान्तीय शासक ( Governor ) गोव महाप्रभु भी नैनधर्म के अनन्य भक्त थे। नैनधर्मको धारण करके वह ऐसे पवित्र डुबे कि उनका चारित्र धर्म स्वर्ग के किये सीडियां ही माना गया ! गोप चामूप गौड थे और उनके गुरु मूढसंघ देशीयगण के सिद्धांताबायें थे। उन्होंने जैन सिद्धांत में उनको पाहत बनाया था। कुछ टूमें एक विमान बनवाकर उसके लिये खूब दान दिया था। इनके पुत्र सिरियण्ण श्रीपति बांधव पुरके शासक थे और पौत्र महापवान गोव थे। गोपणके दुर्गके शासक नियुक्त किये गए थे । उन महाप्रभु दोधर्मन (१) गोपाई नौर (२) पाई नामक थीं और दोनों ही अपने पतिके समान जिनेन्द्रभक्का थीं। एक दिन चामुक १-मेबै० पृ० १५८-१५६, २०

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