Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 121
________________ १.१] ... संवित बैन इतिहास । अनुयायी थे। मादिगोड़के पुत्रका नाम भी बोम्मण वाहमा बन्द्र मन्पारिदेषके शिष्य थे। सन् १३७२१० में उनोंने समाधिमाण किया था। उनका एक रामकर्मचारी भी उन्हीं गुरुका शिष्य था। उस समय जैनगुरु भावकोंको धर्ममार्गमें प्रसर करते रहते थे। सोहरायके महापम् सम्मगौड़ कयरोगसे पीड़ित हुये । सन् १३९४० में वह पाट-पर्वतोंकी ताटीमें नगियकोय नामक स्थान मौषधि उपचार के लिये ना रहे थे। परन्तु उनको स्वास्थय काम नहीं हुमा । बह और माये और अपने गुरु सिद्धांतदेवकी शरणमें पहुंचे। गुरु महाराजने उनका अंत समय निकट जानकर उसल्लेखना व्रत दिया। पंच नमस्कार मंत्रका बाप करते हुये उन्होंने विधिवत प्राण विसर्जित किये थे। इस वह सोहरायके महाप्रभूओं द्वारा धर्मका उत्कर्ष विशेष हुमा वा। .. भावलिनॉडके महाप्रभु और जैन धर्म । सोहराब स्तवनिधिके शासकोंके अनुरूप ही बालिनॉडके महाप भी बैन धर्मके मनन्य उपासक थे। उनके संरक्षणमें बैन धर्मका उत्कर्ष इस प्रदेशमें ऐसा हुमा था कि वैसा उस समय न्या कहीं भी नहीं हुमाया। भापकिनॉडके महापम शासकोंके साथ बहक सम्बार, सबमहिलायें और नागरिक भी बैन धर्म प्रमाणनाके . १-मे. पृ. १३५। 8-" The Mabaprabhus of Avaliand by their stead-fastmono to the service of the Jaiaa Dharma bad nised religious soul to a height which it rarely attained anywhere in those daya." .:-Dr. Salators, मे . .

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