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विजयनगरवासनाला नर्म। [८१ पुनिया विनवपति कीन मोर मंदिरों के संरक्षक होते थे। मंदिरोसे
मारने हुए थे, उनकी नामदनीसे 8 मंदिरका नाचार्य (१)माहार, (२) मेषज्य, (३) नमय, (४) मोर शाम दानकी व्यवस्था
मदिर कासाबाइस प्रकार मुनिराज भोर मदिर कोकोपकारक साधन बने हुये थे। लोगों पर उनका बच्छा प्रभाव पड़ा हुमाया। जैन सिद्धान्तके सार मुनिजन अन्य सिद्धान्तोंक भी पारगामी होते थे। इसीलिये निधर्मक स्थम माने जाते थे। ज्ञान-अंधकारका नाश करने के कारण वे अविवलित-बोष-नीप' और 'समोहर' कहे बाते ' बनता ज्ञान-प्रमा करना उनका परम कर्तव्य बा । जो माधु हानी पानी नहीं होते थे, उन्हें साधुवेश माना जाता था और कसा वाताव किये ज्ञानहीन सधुदेषो केन अपना पेट भागाती सामते मार्गशतः मुनिष विवेकपूर्वक लोककल्याणमें निरत था।
आपिकाये। मुमुक्षु महिलायें पा छोड़कर सर करूपाणमें निरत होती थीं। सके संघका नेतृत्व भी संभवतः मैनाचार्य कति थे; क्योंकि लेखों में बके गुरु जैनाचार्य रह गये हैं। यह माथिका ज्ञान-ध्यानमें
१-गणित्ति वशिलालेख-सिमा०, भा० १० पृ. ३-४. २-केपि स्वादापाणे परिणता विद्यावहीनतम योगीशा भुवि संभव कि नंतरिक्ष ।
गणिगित्ति वर्गात शिलालेख ।' ३-गदर (विगेरे) के लेख न. ४४ में इलेकरियर नामक पाक्षिक गुरु नदिमाक है। मलसंप कोरकुम्दान्वयसे सम्बन्धित
(ASM., 1936, p. 178.)