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किया गया था। किनीमायावनिका रायके समान गामाते थे. जिससे उन सब परदेशसे सट। जर मर्तिपूजक गते थे। उनके जैनधर्मानुयायी और राज्याधिकारी शोकरानि होमेपर जैनाचार्योने उनका एक बड़ा संघानिका यामक स्थापित किया प्रतीत होता है। उसे पानीय' का अपवंश मानमा कुछ ठीक नहीं चला ! उनका मा संघ पनानेकी नाप"सता यूं पड़ी होगी कि वे विदेशी और उस समय वर्णाश्रमी महराका प्रभाव नियोंग मी पावा! नई २ उपमातियां भी बनेगी थीं। एक लेख में उस समय अठारह नातियों का उल्लेख है, जिनमें अछूत भी सम्मिलित थे और उन सबने मिलकर केशवमंदिर बनाया था। वैष्णवोंमें यह दावा नोंकी देखादेखी प्रचलित ही प्रतीत होती है।
मुनियोंका महान व्यक्तित्व । दिगम्बर जैन मुनि निगरम्भ और निष्परिग्रह कर अपनी मामाका बर्ष और लोकका पकार कानेमें नित थे। उनकी महान् पद्रियोंसे स्पष्ट है कि वे चारित्र, विद्या और शानमें बड़े पढ़े. एवं देवेन्द्रों-नरेन्द्रोद्वारा पूज्य थे। भट्टारक धर्मभूषणको एक मेख में "मिनेन्द्रमाण रोक"-"देवेन्द्रपूज्य"-"चतुर्विधतान चिन्तामणि" पौर "मिनमंदिर-वीर्णाद्वारक" कहा गया है, जिससे प्रगट है कि . .१-संह, मा. ३ खा २ पृ. १६२-१६३. -ASM. -1989.: p. 101. १-पंचमाती वा लेखन.. ४.. ASM. 1934176