Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 93
________________ on] . सविन विदास । mammommmmm खा- N-न्दु जाकका यह लिखना विजयनगर साम्राज्यमासे नगला रखता है। जैनधर्मको रामाश्रय प्राय बा। समय पर बह विसनगरका राजधर्म मी रहा था। विजयनगर सम्राटोंकी उसके पति, समुदार दृष्टि थी। उनके राजदरबारों में जैन भागों पंडितो. मोर. कवियों को सम्माननीय पद प्राप्त था। विजयनगर शासनके प्रारम्भमें दिगन बादकुशक जैनाचार्योका प्रायः समार. वा-इसीलिये बह मैनेता वादियों के ममकलमें नहीं टिक पाते. थे; किन्तु बादी विषानन्दने इस. कमीको पूरा करके जैनधर्मकी भपूर्व प्रमावना की थी।' समाज व्यवस्था। विजयनगर साम्राज्यमें समान व्यास्था अपने प्राचीन. रूप भलित थी । मुसम्मानों और ईसाइयों के प्रचारको लक्ष्य करके वर्णाश्रम धर्मके पारने में अहाना करती जाती थी। विजयनगर राजाभोंक विनों में सवर्णाश्रमाचार-प्रतिपावनतत्परः' मनवा 'वर्णाश्रमधर्मपालिता' इस बात के योतक है कि राबायोग वर्णाश्रम- धर्मकी रक्षा में तत्पर । बराचर्यजी के समय ही वर्णाधमी पौराणिक सिन्दूधर्मका पार कर रहा था किन्तु ब्राह्मण, क्षत्रिय, क्षेत्र और co" In this harbour one may find everything that can be desired. Ope thing alone is forbidden namely to kill a row or to eat ils flesh: whosoever should be discovered slaughtering or. cating one of these animals, would be immediately punished with date -Major I. p. 18. २-१, पृ. १९६-१६॥ पोपटक सगा भावीवीपक, निज परिहर दिः (११४ KASM. 1938. p. 319)

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