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विजयनगर साम्राज्यका इतिहास। [५३
हरिहरके शासनमें जैनधर्म। यपि हरिहरनरेश विरुपाक्षदेवके भक्त थे, परन्तु उनके शासनपास जैनधर्मको भी माश्रय मिला था। विजयनगर स्माटोंने समुदाय नीति धारण की थी-उनके निकट उन मबको ही संरक्षण प्राप्त वा, को मुसलमानों के विरोधी थे। जैनधर्मकी भी उनके निकट प्रश्रय मिका था।' हरिहर प्रथमके शासनकालमें बेल्लारी जिलेका रामदुर्ग नामक स्थान एक प्रमुख जैन केन्द्र था। यहां मूरु संघके नाचार्य पसिद्ध थे। सन् १३५५ ई० में मोगराज नामक जैन व्यापारी ने शान्तिनाथ जिनेश्वरकी प्रतिमा वहां प्रतिष्ठित कराई थी और उत्सम मनाया था। सास्वतगच्छ, बलात्कारगण और कोण्डकुन्दान्वयके नमकीर्ति नाचार्य शिष्य माघनन्दि भाचार्य भोगराजके गुरु थे। मनोंको अपना धर्म पालने और उसका प्रसार करने की पूर्ण सुविधा प्राप्त की। हरिहरके सम्बन्धी भी कई जैन थे, जिनको उन्होंने अपने भाषीन महामंडलेश्वर नियत किया था। हरिहरने मानी इकलौती बेटीका विवाह बल्लाळ गाजमार बालप्पा दंडनायकके साथ किया बाल राज्यके जैन राजाओंको सब ही मधिकार उन्होंने प्रदान किये। गर्ष यह कि विजयनगर राज्यमें जैनोंको पारम्भसे ही सम्मान और संरक्षण मास वा
बुकराय प्रथम । हलके उतारिकारी उनके भाई दुमदुबे, बोमन् ११५५० . -संगर, १० २९८-९९।२-मे.,.५८।३-दक्षिणा, पृ. १३८ । ४-सिमा• मा... ४.