Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 57
________________ ४.] संवित जैन इतिहास । विधारण्य द्वारा पुनरोद्वार होनेके कारण ही विजयनगर विधानगर नामसे सिद्ध हुमा प्रतीत होता है। विजयनगरका वैभव। विजयनगरका वैभव महान् था-यह लोकके महान् नगरों से एक था। मानक उसे हम कहते हैं। मद्रास प्रान्तके वर्तमान बल्लारि जिलेके अन्तर्गत होमपेटे तालके में वह हम्मिग्राम है। वास्तबमें विजयनगरके मंशावशेषका प्रतीक ही हमिहै, जो नौ वर्गमीकमें फैले हुए है। दादासे यात्री और व्यापारी उस नगरका विशाल रूप देखने जाते थे, परन्तु भान वह धराशायी है। उसका पूर्व वैमा उसके खण्डहरों में कुल पड़ा है। उसके भनूर रूपको देखकर विदेशोंके यात्री दंग रह पाते थे। सन् १५१२६० में मन्दुमजाक नामक बात्री विजयनगर देखने नाया था। उसने लिखा था कि वैसा नगर कहीं दृष्टिमें नहीं बाग गौर न उसकी बराबरीका कोई नगर दुनिया में सुनाई पड़ा। यह नगर सात कोटोंमें बसा हुमा था। सातवें कोटमें गजमहरू थे। प्रत्येक वर्गके व्यापारी वहां मौजूद थे। डीग, मोती, लाल मादि नवागत खुळे बाजार विकते थे। ममीर और गरीब सभी बसाहरातके कंठे, कुणा मोर अंगूठियां पहनते थे।' पन्द्रहवीं शताब्दिमें दमक (सिरिया) से निकोकोकॉन्टि (Nicolo Conti) नामक एक 1. The city of Bidjanagar is such that pupil of the eye has never seen a place like it, and the ear of intelligence has never been informed that there existed anything to equal it in the world. It is built in such a manner that seven citadels and the sunne number of walls caclose each other etc." -Major Pp 33–76.

Loading...

Page Navigation
1 ... 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171