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विजयनगर साम्राज्यका इतिहास
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विद्वान इस घटनाको सन् १३३६१० में पटित हुई बताते है। अपने मतकी पुष्टि में ऐसी शिलालेखीय साक्षी उपस्थित करते। विसमें होसक सम्राट् कबीर बलाक तृतीयके समबमें ही हरिहरको महामंडलेश्वर शासनकर्ता और विरुवा बल्लाको सामान्य शासक घोषित किया गया है। किन्तु नवीन ऐतिहासिक सामिग्रीके समय र मत ठीक नहीं जंचता । होसक स्माटोका यह नियम वा कि
अपने महामंडलेशर सामन्तों को अपने २ प्रान्तमें शासन करनेकी छूट देदेते थे। उनके ही अनुरूप विजयनगर समाटोंने भी सामन्तोके लिये होम विरुद्ध महामंडलेश्वर' बाल क्वाथा और उन्हें पान्तीय शासनाधिकार भी किया था। हरिहर होरपक नरेश वीर बल्लाळके पाकमी सामन्त थे। उन्होंने इसी लिये हरिहाको सहतका शासन
al नियुक्त किया । हगिडाने होरपळ साम्राज्यकी खाके लिये ही उस सगी प्रदेशमें किले और दुर्ग बनवाये थे। उनके भाई भी होस साम्राज्यको रक्षा ही क्या ! पहिक कहिये हिन्दू राष्ट्रकी
१-श्री वासुदेव उगध्यायने मि• गरस मादिकी भाति इस पुरातन मतका प्रतिपादन किया था।
-वि., पृ. १६ । २-सामन्तोके दानपत्रों में सम्र का उलेख न होनेसे यह नहीं कहा वासवा कि वह शासक स्वाधीन होगया था। वीर बलाने देश. नयाकी भावश्यक्ताके समय अपने महान पद और सामन्तोंके पदोका ध्यान ही नहीं रखा। एक शिलालेखमें बलाल तृतीय दंडनायक मेदगिदेव भोर अलिय मायके साथ शासन करते लिखे गये हैं। (का. ११२) ऐसे ही और भी उल्लेख है। विग्यनगर गज्यकालके शिक्षासमे.. प्रान्तीय शासकों द्वारा प्रकाशित किये गये हैं। उनसे यह सिद्ध नही होता कि शासक स्वाधीन थे । विशेषके लिये शियन हिरीका सायी मा. ८१में प्रसापित प्रो. गोरेलायो ।
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