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'प्राकथन ।
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गिरिनार पर्वतपर जिनेन्द्र नेमिकी वंदना करने भाये थे'। वह उस सु-प्रातिके शासक थे जो मूलमें सु-राष्ट्र (सौ-राष्ट्र= काठियावाड़) के. निवासी थे ।
सुमेर लोग और जैनधर्म ।
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रक्त ताम्रात्रमें सुनृाको रेवानगर के राज्यका स्वामी' ठीक वैसे ही लिखा है जैसे कि उपगन्त कालमें विभिन्न राजवंशोंने अपने मूल पुरुषके निवामन्थानकी अपेक्षा अपनेको उस नगरका शासक लिखा है जैसे राष्ट्रकूट राज' कोहलूगधीश्वर - शिलहार वंशके राजा स्वयंको 'नगर पुग्दम' व ' लिखते थे यह रेवानगर नर्मदा नदी के तटपर जैनों का एक प्राचन केन्द्र था और आज भी तीर्थ रूप में जैनी उपक्की वन्दना करते हैं। बेबीलोनके उपर्युक्त ननुशदनेजर नरेश अग्नेको रेवानगरके राज्यका स्वामी' घोषित करके यह स्पष्ट करते हैं कि वे मूचनः भारतके ही निवासी थे विद्वानोंका मत है कि सु जातिका मृरस्थान सुगष्ट्र है और इस सु जातिके लोग बड़े व्यापारी थे। उनके के जड़ा राष्ट्र ईंगन मेसोपोटीमिया, अरब, मिश्र और भेजेटेनियन समुद्रतक और दृष्ी ओर जावा, सुमात्रा, कंबोडिया और चीन तक बाया आया करते थे । इन सुजातिके लोगोंने विदेशोंमें उपनिवेश बनाये थे और इनका धर्म जैन धर्म था। सुमेर लोगोंका मुख्य देवता 'सिन' (चंद्रदेव ) मूनमें जून'
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१- "जैन" (गुजराती - भावनगर) ता० ३ जनवरी १९३७, पृ० २ | २ - निर्वाणकाण्ड गाथा देखो |
३- जे. एफ. हेबीन्ट कृत प्रागू ऐतिहासिक समयकी राजकर्ती जति 'और विधान भारत, भाग १८ पृष्ठ ६२६-६३१ ।