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प्राकथन । mmmmmmmmmsOMMAMANNA ANIMAmmonommmmmmmm
मत' मम । निन्ध मत' के संस्थापक भी कहे गये भौर चंकि उन्होंने स्वयं ब्रोंकी पारण किया था और लोकको वृती जीवन बिताना सिखाया था, इसलिये वह मयं महान त्य' और उनका मन
प्रात्य' कहलाया था। जैनधर्मको 'आईत् मत' ऋषभदेव • मई' विशेषण के कारण कहा गया था, क्योंकि वह मम थे और कर्म-परिका उन्होंन नाश किया था. जैनधर्म की स्थापनाकी यह नादि कहानी है , जैनधर्म के संस्थापक ऋषभदेव थे, जैन इतिहासका श्रीगणेश ऋषभ जोग्नस होना मानना ठीक है।
भागवत में ऋषमका आठवां अवतार । जैनेता साहित्यसे भी ऋषभदेशक बनिय पर प्रकाश पड़ता है भोपा कोई कारण नहीं कि जिसकी वजह से ग्नको जैन धर्म हीकाधर्मतीर्थका संस्थाक न माना जावे। ब्राह्मण मतके चौवास भतारोम ऋषभदेव बाट मान गये हैं और उनके विषयमें कहा गया है कि:___"राजा नाभिको पनी सुहवी गर्भमे भगवान ने अपमदेवके रूप जन्म लिया । इस अवतारमें समस्त मासक्तियाँस रहित रहकर, अपनी इन्द्रियों और मनको अत्यन्त शान्त करके एवं अपने स्वरूपम स्थित होकर ममदर्शक रूपमें उन्होंने मूढ़ पुरुषक वषम योगमाधना की। इस स्थितिको महर्षि ग परमस पद अथवा अवकृत चर्या कहते हैं।"
- भागवन, २-७-१०)x इस योग के द्वारा ऋषभदेव सब पुरुषार्थ पूर्ण हुए थे और उनको सब सिद्धियां पास हुई थीं। किन्तु उन्होंने उनका कमी
-प्रादिपुगण और सं.... प्रथम भाग एवं हमाग 'भगवान् पार्थनाय' (सकी ) प्रस्तावना देखा । ___- 'कल्याण'-भागवतांक, पृ..२३,