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जोगण भणी | जाणी अति होंश्यार || भाग्ये या माहेरे । हिवे चिंतित करूं पार ॥ २ ॥ सन्मानी घणी जोगणी । आसन ऊंच बैठाय । अन्न वसन इच्छित देइ | साता तस उपजाय || ३ || नरमी कहे थे ज्ञानी हो । जाख्यो महारो दुःख ॥ जिम बोल्या तिमही करी । अर्को मुझने सुख ॥ ४ ॥ दुःख सब दाख्यो मन तणो । सुणी जोगणी हर्षाय ॥ किंचित फिकर न कीजिये । यह तो सहज उपाय ।। ५ ॥ ढाल ३ री ॥ वीर नृपति अन्यदा समय || ये देशी || श्रीमति हर्षित हुई जाणी जोगण करामात ॥ हो भाइ || जोगरा पण हर्षित हुइ । जन्म को
श्रय चहात || हो भाइ श्री ॥ १ ॥ कहे राणीजी देखिये । थोड़ा ही दिन के मांय ॥ हो बाइ ॥ मारुं दोनों बन्धवा । करूं में गुप्त उपाय ॥ हो भाइ श्री ॥ २ ॥ एकान्त जाय रेवा भणी । दीनी तस सुखकार || हो भाइ ॥ और सामग्री सब दावी । विद्या साधन तोय हो भाई । श्री ॥ ३ ॥ जोगणी - राधन जोगण कयों देवी प्रत्यक्ष होय हो भाई । क्यों चिंतारी मुझ भणी | कहे